Wednesday, December 8, 2010

कोई दिन

कोई दिन तो कभी मै खुद पर खर्च करूँ |

हर दिन , मिलते ही , टुकड़ों में बंट जाता है ,
इसके उसके नाम की तख्ती से बंध जाता है ,
कभी किसी तख्ती पर खुद का नाम भरूं ||

टप-टप पल हर एक पल टपक रहा है ,
पल मेरे नाम का जाने कौन झटक रहा है ,
कभी तो पल मै कोई खुद के लिए धरुं ||

कोई दिन तो कभी मै खुद पर खर्च करूँ |