tag:blogger.com,1999:blog-85469070369742348812024-03-27T03:11:01.944-07:00महानगर का काव्यऋषिकेश खोङके "रुह"Unknownnoreply@blogger.comBlogger77125tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-50434772555120321852024-03-27T03:10:00.001-07:002024-03-27T03:10:29.913-07:00ग़ज़ल<div>दिल तुझ से लगाया गुनाह किया।</div><div>तुझको खुदा बनाया गुनाह किया।।</div><div>पता न था के हो जाएगा कलम।</div><div>सजदे सर झुकाया गुनाह किया ।।</div><div>भूल गया था दाग चांद पर भी है ।</div><div>तुमको चांद बुलाया गुनाह किया।।</div><div>मोती से आंसू खाक मे मिले जाते हैं।</div><div>तुमने मुझे रुलाया गुनाह किया ।। </div><div>ग़ज़ल इक तुम पर भी लिख देता।</div><div>दिल "रूह" का दुखाया गुनाह किया।।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-84953856857556144162024-03-04T01:38:00.001-08:002024-03-04T01:38:55.300-08:00अग्नि के अविष्कारक<div class="MsoNormal">अभी पिछले शनिवार किसी चेनल पर कास्ट अवे सिनेमा देखा और उसका एक दृश्य जहाँ नायक अनेक प्रयासो के बाद आग जलाता है , मुझे सोच में डाल गया की आखिर अग्नि अथवा आग का मानव के लिए पहली बार आविष्कार किसने किया ?</div><div class="MsoNormal">आइये इस विषय पर थोडा विचार-विमर्श और खोज की जाये |</div><div class="MsoNormal">विचार करें तो आपको ख़याल आएगा की विकास की अवस्था में जब मानव भी लगभग अन्य जंगली प्राणियों जैसा ही था तो शायद वह भी आग से डरता होगा और विकास की प्रक्रिया में जब देवी-देवताओं का विचार नया ही था , उसका अविकसित मस्तिष्क इसे कोई देवीय घटना मान बैठा होगा | आज भी संसार के सभी विकसित और अविकसित समाजों में अग्नि का सम्बन्ध देविक कार्यो से किसी न किसी प्रकार से जुड़ा हुआ है |</div><div class="MsoNormal">मानव के प्रारंभिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं की कल्पना करते हुवे सहज ही ख्याल आता है की सर्वप्रथम अग्नि का उपयोग मानव ने अकस्मात् दुर्घटनावश ही किया होगा | अग्नि के अकस्मात् उपयोग के जो प्रारंभिक कारण मुझे प्रतीत होता है वो शायद जंगल की आग के चपेट आये हुवे किसी प्राणी का भक्षण है | इस प्रकार शायद मानव ने जाना होगा की आग में पका कर मांस अधिक रुचिकर और खाने में आसन होता है और फिर वो जब भी संभव होता होगा अर्थात जब भी कही अचानक प्राकृतिक कारण से आग लगती होगी , मांस और शायद अन्य प्रकार के जंगली अनाज भी पकाता होगा | अभी भी मानव प्राकृतिक रूप से लगाने वाली आग पर ही निर्भर था , पर धीरे-धीरे आग से उसका भय जाने लगा होगा और मानव ने संभवत: आग को चिरस्थाई रूप से जलते रहने की व्यवस्था के बारे में सोचा होगा |</div><div class="MsoNormal">विचार करें की क्या किया होगा उसने ? आसान था की किसी जलती हुई लकड़ी को एक स्थान जैसे किसी गड्डे में या गुफा में जहाँ हवा से आग बुझ न जाए , स्थापित कर दिया गया होगा और निरंतर आग के जलाने के लिए उसमे सूखीं लकड़ियाँ डाली जाती होगी | इस जलती हुई अग्नि ने जल्द ही देवता का रूप ले लिया और अनेक कर्मकांड इसके लिए रचे गए जो आज भी चल रहे है</div><div class="MsoNormal"><br></div><div class="MsoNormal">कबीले के रूप में चलने वाले समाजों में जब भी एक समूह शिकार पर जाता या कबीला छोड़ कर नया कबीला स्थापित करता था या पलायन करता था तो इस अग्नि में से एक जलती हुई लकड़ी ले जाता था | बाद में जातियों के एकमेव स्थाई अग्नि के साथ हर परिवार अपनी स्थाई अग्नि भी रखने लगा होगा | कई समाजो और विलुप्त सभ्यताओ में यह प्रथा उनके अंत तक बनी रही और आज भी कई समाजों में यह नियम इसी प्रकार कार्य करता है जिसे प्रथा का नाम दिया जाता है | उदारहण के लिए माया और पेरू , पारसी, ग्रीक सभ्यताएँ अपने पिरामिडो/मंदिरों में स्थाई आग जला रखते थे और यहूदी सिनेगोग और कैथोलिक गिरिजाघरों में 'अखंड दीप' आज भी होते है | भारत में लगभग प्रत्येक स्थान पर अखंड ज्योत रखने के अनेक कर्मकांड सदियों से चल रहे है , जैसे नवरात्र के दिये अथवा नंदादीप और दरगाहों और साधुओं के स्थान पर अखंड धुनी | इन सब के पीछे कारण , यही हमारे पूर्वजों की आदिम स्मृति है |</div><div class="MsoNormal">अब अखंड ज्योत की व्यवस्था के बाद , मानव ने संभवत: आग की उत्पति के कारणों पर ध्यान देना शुरू किया होगा और जल्दी ही समझा लिया होगा की आकाश से गिरने वाली बिजली से लगने वाली आग के अलावा अन्य कारणों से जैसे सूखी लकड़ियों के घर्षण और दो पत्थरों के आपस में टकराने इत्यादि से भी आग उत्पन्न होती है और यदि वो ये कर सके तो हर स्थान पर जलती हुई आग ढोने की जरूरत नहीं है |</div><div class="MsoNormal">पर कैसे , यदि आप प्राकृतिक साधनों से आग जलाने का प्रयत्न करें , जिस प्रकार कास्ट अवे का नायक करता है तो आप को समझ आएगा की ये कार्य इतना आसान नहीं है जितना लगता है और वो भी तब जब आप प्राकृतिक साधनों का वैज्ञानिक रुप से उचित प्रयोग जानते है | अतः प्राचीन मानव के लिए ये कार्य किसी भी प्रकार से आसान नहीं रहा होगा और प्रारंभ में अनेक प्रयासों और बहुत सारा समय लगने के बाद उसे ये सफलता मिलती होगी |</div><div class="MsoNormal"><br></div><div class="MsoNormal">जहाँ तक मै समझता हूँ , आदिम कबीला व्यवस्था में जहाँ शिकार के लिए समूह के प्रत्येक सदस्य का कोई सुनिश्चित कार्य बटा होता है , इस कार्य के लिए भी समूह का कोई सदस्य निश्चित किया गया होगा | समूह का जो सदस्य आग जलाने का कार्य करता होगा , निश्चित ही समूह में पुरोहित का रुतबा पा गया होगा क्योकि उसने आग पर विजय पा ली थी और वो आग जलाने के एक या एक से ज्यादा उपाय जनता था | आग पर इस विजय ने मानव के लिए भविष्य के नए द्वार खोल दिये और अब मानव इसका उपयोग मात्र खाना पकाने के आलवा अनेक कार्यो में कर सकता था |</div><div class="MsoNormal">आग पर विजय पाने वाले इस व्यक्ति को हम आग का अविष्कारक कह सकते हैं | पर ये था कौन ?</div><div class="MsoNormal"><br></div><div class="MsoNormal">संसार में फैली विभिन्न मानव सभ्यता के इतिहास चिन्ह इस विषय पर प्रायः मौन ही है , पर भारतीय आर्य सभ्यता का विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ ऋग्वेद इस व्यक्ति के विषय में न सिर्फ कुछ बताते है बल्कि इस अग्नि पर वो किस प्रकार अधिकार करता है इस पर भी प्रकाश डालते हैं | इसके अलावा ग्रीक पुराण कथा भी इस विषय पर कुछ प्रकाश डालती है पर इस कथा पर भी कुछ-कुछ संस्कृत का प्रभाव विद्वान बताते हैं |</div><div class="MsoNormal">आग की खोज विश्व के विभिन्न भू-भागों में मानव द्वारा विभिन्न रीतियों से की होगी और यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा होगा पर विश्वप्रसिद्ध आर्य ग्रन्थ ऋग्वेद में इस खोज को सहेज कर रखा गया और कम से कम आर्यों के के लिए आग के अविष्कारक का नाम हमें इससे प्राप्त हो सकता है |</div><div class="MsoNormal">ऋग्वेद के अनुसार ऋषि अथर्वन अग्नि के अविष्कारक हैं |</div><div class="MsoNormal">अग्निर्जातो अथर्वणा विदद विश्वानि काव्या | भुवद दूतोविवस्वतो वि वो मदे परियो यमस्य काम्यो विवक्षसे || अर्थात् अथर्वन् द्वारा आविर्भूत हे अग्नि, आप सब स्तवनों के ज्ञाता हैं ।....... (ऋ. १०.२१)</div><div class="MsoNormal">इममुत्यमथर्ववदग्नि मन्थन्ति वेधस:'' अर्थात् हे अग्नि, विद्वान आपका मन्थन करते हैं, जैसा कि अथर्वन ने किया ।</div><div class="MsoNormal">उपरोक्त वेद मन्त्रो में ऋषि अथर्वन का उल्लेख किया गया है और ऋग्वेद एवं अन्य वेदों में इस प्रकार अनेक मन्त्र है</div><div class="MsoNormal">ऋषि अथर्वन को अग्नि के अविष्कारक होने के कारण अंगिरस भी कहा जाता है और इन्ही के नाम से अग्नि का मंथन करने वाले पुरे जाति समूह को अंगिरस नाम से ख्याति मिली तथा वे अग्नि के वंशज मने गए | अंगिरस अग्नि के अविष्कारक होने के कारण समाज में उच्च स्थान के अधिकारी थे और इन्हें समाज में सम्मान प्राप्त था | इन्ही अंगिरस कुल के एक ऋषि घोर-अंगिरस श्री कृष्ण के आचार्य थे |</div><div class="MsoNormal"><br></div><div class="MsoNormal">वेद मंत्रो से प्राप्त जानकारी के आधार पर अथर्वन प्रथम ऋषि हैं जिन्होंने अग्नि को मुख्यता लकड़ी पर मंथन अथवा रगड़ के द्वारा खोजा और एसा प्रतीत होता है की अंगिरस नाम से जाने वाली इस जाति ने अग्नि-मंथन के कार्य में महारथ प्राप्त कर ली थी और इसीलिए जलते हुवे कोयले का नाम अन्गिरसों के नाम पर अंगार पड़ा | वैदिक कथाओ के अनुसार अंगिरस न सिर्फ मंथन से अपितु पत्थरों के आपस में घर्षण से भी आग उत्पन्न करना जानते थे और इसीलिए वो हमेशा ही काष्ठ पर निर्भर नहीं थे अपितु परिस्तिथि अनुसार अन्य उपायों से भी आग जला सकते थे |</div><div class="MsoNormal">वेदों , पुरानो व अनेक प्राचीन आख्यानो में अन्गिरसों से सम्बंधित रूपक कथाएं हैं जो उपरोक्त विधियों का वर्णन कराती है |</div><div class="MsoNormal">महाभारत कथा बताती है की जब अग्नि तपस्या के लिए वन में चली गई तो ऋषि अथर्वन ने अग्नि को मनाया और उनके धर्मपुत्र बन गए अर्थात जब वन से आपने-आप जलने वाली अग्नि बुझ गई तो अंगिरस ने काष्ठ-मंथन के द्वारा अग्नि उत्पन्न कर ली | एक दूसरी कथा कहती है की अग्नि समुद्र में जा छिप गई , लगता है यहाँ किसी जल-प्रलय की बात की जा रही है जिसमे अखंड अग्नि का विलोप हो गया तब फिर अंगिरस ने अग्नि उत्पन्न कर ली | यजुर्वेद कहता है की हम धरती को खोद कर उसकी गोद से अग्नि निकले (यजु. ११.२१) अर्थात धरा का उत्खन कर चकमक में पत्थर प्राप्त करें और उससे आग जलाएं | रुग्वेद के एक मन्त्र के अनुसार ऋषियों ने मंथन के लिए एक उपकरण भी बना लिया था (ऋ. ३.२९. १-12)|.</div><div class="MsoNormal"><br></div><div class="MsoNormal">अस्तु कम से कम अब हम अग्नि के अविष्कारक हमारे भारतीय पूर्वज का नाम तो गर्व से सब को बता ही सकते हैं |</div><div class="MsoNormal"><br></div><div class="MsoNormal"><b>लेख : ऋषिकेश खोङके</b></div>Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-26872286656887463072024-02-05T02:12:00.001-08:002024-02-05T02:12:08.084-08:00मधुशाला से प्रेरित<div>एक काव्य पाठ में जहां विषय बच्चन जी की मधुशाला था, कुछ प्रेरित होकर लिखने का प्रयास किया था।</div><div><br></div><div>अंतस की प्यास बुझाने, भटक रहा है मतवाला।</div><div>हर द्वार से लौटा खाली, कहीं नही है अब हाला।।</div><div>ह्रदय चषक रिक्त पड़ें है, प्रीत के सारे प्याले सूखे।</div><div>रिश्तों की निर्जनता मे, कहां मैं पाऊं मधुशाला।</div><div><br></div><div>परागकण ज्यों भंवर चूसे, मधु पिए पीनेवाला।</div><div>और और का करे क्रंदन,रिक्त होते ही प्याला।</div><div>क्षण भर विलंब भी बन जाए जहां पर ज्वाला। </div><div>अविरत वहां मधु छलकाए देखो मेरी मधुशाला ।</div><div><br></div><div>व्यतीथ हृदय का एक उपाय हाला हाला हाला।</div><div>उमंग में भी मदिरालय की राह पकड़े पीनेवाला।</div><div>पूर्णिमा हो जीवन में या फिर हो चाहे अंधियारा </div><div>पीनेवाले का हर क्षण साथ निभाए मधुशाला ।।</div><div><br></div><div>जात धर्म कोई ना देखे, देखे सिर्फ मधुबाला।</div><div>हर इक वो हाथ शुद्ध , जिस हाथ मे हो हाला।</div><div>धर्मगृह भी इस धरा पर, है जहां हथबल।</div><div>प्रेम का वहां पाठ पढ़ाए मेरी देखो मधुशाला।।</div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-61542243364090015292024-02-05T02:09:00.001-08:002024-02-05T02:09:13.611-08:00प्यार का खत<div>प्यार का जब खत पहला लिखा था।</div><div>नाम उसका मेरी जानां लिखा था।।</div><div><br></div><div>बयाने दिल काम मुश्किल बड़ा था</div><div>खत लिखने को सारी रात जगा था </div><div>लिख लिख कर खत फाड़ें पचासों </div><div>तब कहीं हाल दिल का लिखा था।।</div><div>नाम उसका मेरी जानां लिखा था।।</div><div><br></div><div>नज़रों को उसकी जादू लिखा था</div><div>सावन घटा जुल्फों को लिखा था </div><div>गौरे रंग को हाय संगेमरमर ,</div><div>और बदन तिलस्माना लिखा था ।।</div><div>नाम उसका मेरी जानां लिखा था।।<br></div><div><br></div><div>कटती नहीं रातें ये भी लिखा था</div><div>आईने में दिखता चेहरा लिखा था </div><div>सामने शायद मैं कह नहीं पाता</div><div>खत में आशिक़ तुम्हारा लिखा था।।</div><div>नाम उसका मेरी जानां लिखा था।।<br></div><div><br></div><div>प्यार का जब खत पहला लिखा था।</div><div>नाम उसका मेरी जानां लिखा था।।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-35136994740447352142024-01-31T04:33:00.001-08:002024-01-31T18:41:42.632-08:00कवि की मृत्यु<div>सोचता हूं जब </div><div>मुझ जैसी कवि की मृत्यु आएगी</div><div>स्वर्ग की ट्रेन, नरक की ट्रेन</div><div>सवारी कहां की टिकिट पाएगी।</div><div><br></div><div>बड़े पुण्य किए हों हमने </div><div>अब ऐसा भी नहीं है ,</div><div>पाप लेकिन</div><div>तथाकथित पुण्यत्माओं जितने भी नहीं है।</div><div><br></div><div>कहीं ऐसा तो नहीं होगा ?</div><div>काउंट कम होने के कारण,</div><div>आत्मा त्रिशंकु जैसा अधर में लटका होगा।</div><div>न स्वर्गवासी न नरकवासी की</div><div>उपाधि आयेगी।</div><div>अरे पूजा में पंडितो की जमात पर</div><div>मेरे नाम के आगे पर स्वर्गवासी ही लगाएगी।</div><div>इस झूठे प्रमाणपत्र के चक्कर में</div><div>आत्मा यमपुरी के चक्कर लगाएगी।</div><div>मुक्ति न मिलेगी तो,</div><div>सबको भूत बन कर सताएगी,</div><div>फिर आत्मा शांति के लिऐ</div><div>कवियों की मंडली शायद</div><div>मेरे स्मरण में कवि सम्मेलन करवाएगी,</div><div>बॉस पर गारंटी कुछ नही की इससे</div><div>आत्मा शांति पाएगी।</div><div>व्यतिथ हो कर हो सकता है आत्मा </div><div>किसी शरीर में प्रवेश कर जायेगी,</div><div>और</div><div>और</div><div>और</div><div>खुद कविता सुनाएगी</div><div>यमलोक तक आवाज जायेगी</div><div>कौन बचा है कवियों से ,</div><div>यम की भी शामत आएगी</div><div>मुझे लगता है दो चार कविताओं में ही </div><div>यमपुरी कंपकंपा जायेगी,</div><div>कवि की आत्मा तभी मुक्ति पा जायेगी</div><div>अंततः स्वर्गवासी कहलाएगी।</div>Unknownnoreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-39872438826163546282024-01-30T07:31:00.001-08:002024-01-30T07:31:20.088-08:00मस्जिद में ना वो मंदर मिला (ग़ज़ल)<div>मस्जिद में ना वो मंदर मिला।</div><div>उसे जो ढूंढा वो अंदर मिला।।</div><div>सच खोजने को गए जहां भी।</div><div>बस झूठों का समंदर मिला ।।</div><div>इंसा की बस्ती में दश्त से आए।</div><div>बड़ा खौफनाक मंजर मिला।।</div><div>अन अल हक़्क़ सदा पे मंसूर।</div><div>फंदा हमेशा गले पर मिला।।</div><div>जात पात और धर्म के नाम।</div><div>नही कुछ सिवा बवंडर मिला।।</div><div>देखा जो मैने माज़ी में सबके।</div><div>पुरखों के नाम बंदर मिला।।</div><div>बोझ कितना "रूह" न पूछों।</div><div>मन मन भर मन पर मिला ।।</div><div><br></div><div>**ऋषिकेश खोडके "रूह"**</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-64573442254517051062024-01-10T08:18:00.001-08:002024-01-10T08:18:34.153-08:00शह और मात का खेल है (ग़ज़ल)<div>शह और मात का खेल है।</div><div>राजनीति बड़ी चुड़ैल है।।</div><div>कांधे पर जुआ ज़िंदगी का</div><div>आदमी कोल्हू का बैल है।।</div><div>भीड़ ही भीड़ दूर तलक ।</div><div>सब और रेलम पेल है।।</div><div>अपने जी का करोगे कैसे।</div><div>दूसरों के हाथ नकेल है।</div><div>मन का घड़ा भरता नहीं।</div><div>क्या किसी के पास गुलेल है।।</div><div>**ऋषिकेश खोडके "रूह"**</div>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-66116011882878087602024-01-06T23:32:00.001-08:002024-01-06T23:32:30.661-08:00जो भी कहना मिल कर कहना। (ग़ज़ल)<div>जो भी कहना मिल कर कहना।</div><div>नहीं पीठ पीछे, मुंह पर कहना।।</div><div>न रखना कुछ दिल मे अपने।</div><div>कहना जो भी खुल कर कहना।।</div><div>खो जाए जहां खुर के निशान।</div><div>उसे गांव नहीं शहर कहना ।।</div><div>जो बह रहा, सब मल मूत्र है।</div><div>नदी नही इसे गटर कहना।।</div><div>सही गलत सबको पता रूह।</div><div>चाहे ना कोई मगर कहना।।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-72700371457724680552023-12-30T22:06:00.001-08:002023-12-30T22:26:41.824-08:00वाणी का चिंतन गहन करें। (ग़ज़ल)<div>वाणी का चिंतन गहन करें।</div><div>शब्दों का उचित चयन करें।।</div><div>उम्र से अपनी बड़ा हो कोई।</div><div>झुका कर सर नमन करें।।</div><div>दग्ध हो जायेगा जीवन सारा।</div><div>अहम अपना दहन करें।।</div><div>आने वाली पीढ़ी के खातिर।</div><div>आओ प्रकृति का जतन करें।।</div><div>अद्भुत समस्त ये संसार है।</div><div>जाइए इसमें भ्रमण करें।</div><div>ऊंच नीच जात पात धरम।</div><div>विष ये समस्त वमन करें।</div><div>सलाह नही रूह के विचार।</div><div>इच्छा हो तो आप ग्रहण करें।</div>Unknownnoreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-1112357929886971502023-12-18T01:01:00.001-08:002023-12-18T02:04:29.508-08:00परों को आजमा के देखो। (ग़ज़ल)<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">परों को आजमा के देखो।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">ऊंचाइयों पे जा के देखो।।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">कोई आवाज़ नही उठेगी।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">बस्तियों को जला के देखो।।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">कब्जे में हैं फुटपाथ भी।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">चादर तो बिछा के देखो।।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">फुटपाथ पे मरी सर्दी।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">चादर को हटा के देखो।।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">परिंदे आ ही जायेंगें।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">दरख्तों को लगा के देखो।।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">किसी का टिफिन बॉक्स है।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">कूड़े के पास जाके देखो ।।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">कोई सुन ले रूह शायद</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">शोर में चिल्ला के देखो।</div></div>Unknownnoreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-66620704336978099932023-12-14T07:37:00.001-08:002023-12-14T07:42:40.204-08:00धूप को छांव (ग़ज़ल)<div>धूप को छांव कहना सीख लिया है।</div><div>हर हाल में रहना सीख लिया है।।</div><div>कब तक रोक सकोगे तुम उसको।</div><div>जज़्बात ने बहना सीख लिया है।।</div><div>अम्मा ने पूछा हाल, ब्याही बेटी का।</div><div>बोली वो अब सहना सीख लिया है।।</div><div>तवारीख़ धुंधली पड़ने लगी तो ।</div><div>इमारत ने ढहना सीख लिया है </div><div>मानिंदे मोती रूह पिरोये आसूं </div><div>उसने ये गहना सीख लिया है।।</div>Unknownnoreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-74398998168603522552023-12-09T10:11:00.001-08:002023-12-09T10:31:00.828-08:00दिल में हमारे (ग़ज़ल )<div>दिल में हमारे रह कर तो देखो।</div><div>छोटी जगह में बड़ा घर तो देखो।।</div><div>हम तो मुंतज़िर हैं जाने कब से।</div><div>उठाओ नज़रे, ज़रा इधर तो देखो ।।</div><div>नज़रें मिलाकर नजरें छुपाना।</div><div>दिल चुराने का हुनर तो देखो।।</div><div>बड़ी छोटी सी इक अर्ज है हमारी।</div><div>साथ हो ज़िंदगी का सफ़र तो देखो।।</div><div>बड़ा ध्यान देकर सुनते हैं वो।</div><div>रूह की शायरी का असर तो देखो।।</div>Unknownnoreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-39859741852664592072023-12-09T09:56:00.001-08:002023-12-09T09:56:37.498-08:00आरामपसंद (ग़ज़ल)<div>आरामपसंद भी हो जायेंगे ।</div><div>बिस्तर पर बांस के सो जायेंगे।।</div><div>ख्वाहिशें कुछ अब भी बाकी है।</div><div>और यम कहता है चलो जायेंगे।।</div><div>दुआ मांगों देख डूबता सितारा।</div><div>अरमान मुकम्मल हो जायेंगे।।</div><div>ख्वाबों को अपने जिंदा रखना।</div><div>वक्त की आंधी में ये खो जायेंगे।।</div><div>भेड़ चाल में फंस कर रह गए।</div><div>अकेले अब कहीं चलो जायेंगे।।</div><div>कुछ घूंट बचे हैं ज़ीस्त के साकी।</div><div>अब पीकर हम इसको जायेंगें।।</div><div>रूह कहे सब अजर अमर है।</div><div>सिर्फ बदल जिस्म ही तो जायेंगे।</div><div>**ऋषिकेश खोडके "रूह"**</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-82970757973225369212023-11-21T19:48:00.001-08:002023-11-21T19:48:39.962-08:00सांसें हैं लिया करो।<div><div>सांसें हैं लिया करो।</div><div>थोड़ा सा जिया करो।।</div><div><br></div><div>ज़िंदगी शराब है ।</div><div>थोड़ी सी पिया करो।।</div><div><br></div><div>जवाब आ जायेगा।</div><div>गुफ्तगू किया करो।।</div><div><br></div><div>चाक है ,नुमायां है।</div><div>गरेबां सीया करो।</div><div><br></div><div>नामे रूह आसां है।</div><div>लबों से लिया करो।।</div></div>Unknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-25704035054755025842023-11-10T00:28:00.001-08:002023-11-21T19:46:15.476-08:00चलिए उनसे बात करेंगे<div>चलिए उनसे बात करेंगे।</div><div>ज़ाहिर दिले-जज़्बात करेंगे।</div><div><br></div><div>इश्क शायद होगा मुश्किल ।</div><div>कोशिश हम दिन रात करेंगे।।</div><div><br></div><div>खड़े हैं दर पर ले के झोली ।</div><div>हुज़ूर आयेंगे ख़ैरात करेगें।</div><div><br></div><div>भरे पड़े हैं आखों के बादल।</div><div>जाने कब बरसात करेंगे।।</div><div><br></div><div>तैयार होकर रूह खड़े हैं।</div><div>मालुम है वो घात करेंगे</div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-53061298005864694622023-10-14T07:59:00.001-07:002023-10-14T07:59:03.012-07:00सफर कोई हो, मंज़िल तुम्ही हो।<div>सफर कोई हो, मंज़िल तुम्ही हो।</div><div>हर राह का , हासिल तुम्ही हो।।</div><div>दरिया हूं आखिर कहां जाऊंगा।</div><div>मेरी मौजों का साहिल तुम्ही हो।।</div><div>तफ्तीश का ढोंग क्यू करते हो।</div><div>मुमतहिन, मेरे कातिल तुम्ही हो।।</div><div>आज़मा कर देखे जाने कितने।</div><div>आखिर पाया की कामिल तुम्ही हो।।</div><div>रिश्तों की गरमी जो बनाए रखे ।</div><div>रूह इतने काबिल तुम्ही हो।।</div><div><br></div><div><br></div><div>कामिल : संपूर्ण </div><div>मुमतहिन : जाँचने वाला</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-36270808560529801472023-09-13T06:07:00.001-07:002023-09-13T06:07:50.734-07:00बदले हुए हैं मंजर<div>बदले हुए हैं मंजर हम ख़ामोश है।</div><div>सब आंखों में समंदर हम ख़ामोश है।।</div><div>नफ़रतें ज़हन में बसेरा कर चुकी।</div><div>देख हाथों में खंजर हम ख़ामोश है।</div><div>जंगल पर्वत नदिया बर्बाद कर चुके।</div><div>जमीं हो रही बंजर हम ख़ामोश है।।</div><div>शमशीर ली उठा जो काटे नाखून।</div><div>कर दुनियां खंडर हम ख़ामोश है।।</div><div>हालात बदलना मुश्किल भी नहीं।</div><div>पर मान के मुकद्दर हम ख़ामोश है।।</div><div><br></div><div>**ऋषिकेश खोडके "रुह"**</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-91118368271928523802023-08-28T01:26:00.002-07:002023-08-28T01:30:18.870-07:00लाख कह दो तुम की ख़राब <div>लाख कह दो तुम की ख़राब है।</div><div>मुझे सुकूं देने वाली शराब है ।।</div><div>मसला जो उसने ,दिल था मेरा।</div><div>शायद सोचा महज़ गुलाब है ।।</div><div>क्यूं भटकता है दिले- आवारा।।</div><div>इश्क कुछ और नही सराब है।।</div><div>करो कोशिश पढ़ के देखो तो।</div><div>ज़िंदगी मेरी खुली किताब है।।</div><div>बड़े थाट से लेटा रूह कब्र में।</div><div>जन्नत का जैसे कोई नवाब है।</div><div>**ऋषिकेश खोड़के "रूह"**</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-32558682616498542402023-08-23T03:49:00.001-07:002023-08-23T03:49:13.844-07:00चांद पाने की ख़्वाहिश कर के देखो।<div>चांद पाने की ख़्वाहिश कर के देखो।</div><div>हौसले की आज़माइश कर के देखो।।</div><div>क्या पता दिल तुमको दे ही बैठे।</div><div>एक बार फ़रमाइश कर के देखो।।</div><div>कोई कीमत नही है जज्बातों की ।</div><div>चाहो तो कभी नुमाइश कर के देखो।।</div><div>दो गज जमीं भी अब कहां हासिल है।</div><div>कब्रिस्ता की पैमाइश कर के देखो।।</div><div>वो चांद पर जमीं ढूंढते हैं रूह ।।</div><div>तुम भी ज़रा सिफ़ारिश कर के देखो।।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-57036877504579470662023-08-23T03:48:00.001-07:002023-08-23T03:48:20.463-07:00ज़िंदगी अपनी ख़ाक करते रहे।<div>ज़िंदगी अपनी ख़ाक करते रहे।</div><div>तजुर्बात हम लाख करते रहे।।</div><div>आगे बढ़ने की चाहत थी उनको</div><div>किस किस को वो बाप करते रहे।</div><div>अब बैठे हैं आपके सामने तो</div><div>आप के नाम का जाप करते रहे</div><div>वादों करके भुला भी दिया तुमने</div><div>मुरीद गरेबाँ चाक करते रहे।।</div><div>झुलसने से जब लगे जज़्बात।</div><div>रूह शायरी को आब करते रहे।।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-31543330768062234372023-08-23T03:47:00.001-07:002023-08-23T03:47:39.080-07:00मुझमें कुछ तेरे जैसा रहता है।<div>मुझमें कुछ तेरे जैसा रहता है।</div><div>मैं तेरी धड़कन हूं ये कहता है।।</div><div>अश्क नही है ये तो बस पानी है।</div><div>एक समंदर आंखों से बहता है।।</div><div>मुझ से मत पूछिए हिज्र के माने।</div><div>बरसों से यही तो दिल सहता है।।</div><div>झूठे ही सही हमको तुम पुकारों तो।</div><div>कहां कोई आसमान यूं ढहता है ।।</div><div>"रूह" के जैसे है कोई मस्त मलंग।</div><div>बस अपनी ही धुन में रहता है ।।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-28017495018853413282023-08-23T03:46:00.001-07:002023-08-23T03:46:20.243-07:00फासिला दरमियान इतना तो न था<div>फासिला दरमियान इतना तो न था।</div><div>सोचा था तूने जितना उतना तो न था ।।</div><div>जानते हो नज़र उठेगी तो ज़रूर।</div><div>फिर मेरे ही सामने रुकना तो न था।।</div><div>नशा हुस्न का खुद मालूम है तुमको ।</div><div>बज्म में फिर तुम्हे दिखना तो न था ।।</div><div>गुजर गया मैं, तुझे खबर भी नहीं।</div><div>खुद की मुहब्बत में चितना तो न था।।</div><div>खुद को वो रूह खुदा समझ बैठेंगे।</div><div>इस तरहा सामने झुकना तो न था ।।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-48667321435277157832023-07-14T23:53:00.001-07:002023-07-14T23:53:35.033-07:00हमारी नदियां मर रहीं हैं।<div>हमारी नदियां मर रहीं हैं।</div><div>देखता हूं की पानी की जगह,</div><div>हमारे ही मल मूत्र से भर रहीं है।</div><div><br></div><div>दो पीढ़ी पुराने जो बचे हैं लोग,</div><div>कहते हैं कि,</div><div>हम कभी नहाते थे इन नदियों में,</div><div>प्यास भी इसी पानी से बुझा लेते थे।</div><div>पास के गांव की महिलाए,</div><div>घड़ों में भर के ले जाती थी पानी।</div><div>मछुआरे जाल डाल कर,</div><div>कतला, रोहू, सिंघाल पकड़ा करते थे,</div><div>झींगा, केकड़ा</div><div>तो बच्चे भी पकड़ ले जाया करते थे अक्सर।</div><div><br></div><div>एक दादाजी कहते हैं,</div><div>नाव में कई बार आते थे वो दादी के साथ,</div><div>और घंटो नाव पर सिंघाड़े खाते हुवे बिताते थे,</div><div>रोमांटिक डेट कह लो आज के हिसाब से।</div><div><br></div><div>पिछली पीढ़ी वाले भी कहते हैं,</div><div>कुछ साल तो वो भी नदी मैं खेलें है,</div><div><br></div><div>फिर क्या हूवा पता नही,</div><div>अचानक आधुनिकता की बयार चली,</div><div>कंक्रीट के जंगल बढ़ते चले गए,</div><div>और भूख इतनी बढ़ी की,</div><div>की हम नदियों के किनारे भी खा गए,</div><div>नदी में उतरने वाली,</div><div>नालों, झरनों की पगडंडियों खो गई !</div><div>बदले में हमने ड्रेनेज पाइप उतार दिए,</div><div>नदी की छाती पर।</div><div><br></div><div>और अब !</div><div><br></div><div>अब </div><div>हमारी नदियां मर रहीं हैं।</div><div>देखता हूं की पानी की जगह,</div><div>हमारे ही मल मूत्र से भर रहीं है,</div><div>इंसानों के क्या ही कहने,</div><div>मछलियां भी अब,</div><div>अपनी ही नदी में</div><div>उतरने से डर रही है।</div><div><br></div><div>हमारी नदियां मर रहीं हैं।</div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-22788700481624467652023-07-07T04:53:00.001-07:002023-07-07T04:53:48.007-07:00ग़ज़ल <div>बातों में तेरी जायका हरबार अलग है।</div><div>कुछ तो बात है तुझमें जो यार अलग है।।</div><div>जख्म नही होता लेकिन दिल में चुभते हैं।</div><div>ज़ालिम ये तेरी आंखों के औजार अलग हैं ।।</div><div>रहने दे चरागर के दवा काम की नहीं ।</div><div>ये मर्ज अलग है, तेरा बीमार अलग है।</div><div>झूठे तेरे वादें है सारे हम को है मालूम।।</div><div>कह तू चाहे जितना की इस बार अलग है।।</div><div>मौसम बहारों का रूह आता है जाता है।</div><div>तू साथ है तो अब की ये बहार अलग है।।</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8546907036974234881.post-7112225221754150592023-06-29T03:22:00.001-07:002023-06-29T03:22:22.384-07:00बातें<div>मुझे समझ नही आती दिखावटी बातें।</div><div>चेहरे से लिपटी हुई ये सजावटी बातें ।।</div><div>फूट ही जानें दो गुबार दिल का अपने।</div><div>आने दो लब पे थोड़ी बगावती बातें।।</div><div>लफ्जों की लागलपेट बस की नही मेरे ।</div><div>कर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।</div><div>हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।</div><div>डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।</div><div>ना कोई औलिया ना कोई पीर फकीर।</div><div>रूह पर करता है बड़ी करामती बातें ।।</div><div><br></div><div>**ऋषिकेश खोडके "रूह"**</div><div><br></div>Unknownnoreply@blogger.com10