लाख कह दो तुम की ख़राब है।
मुझे सुकूं देने वाली शराब है ।।
मसला जो उसने ,दिल था मेरा।
शायद सोचा महज़ गुलाब है ।।
क्यूं भटकता है दिले- आवारा।।
इश्क कुछ और नही सराब है।।
करो कोशिश पढ़ के देखो तो।
ज़िंदगी मेरी खुली किताब है।।
बड़े थाट से लेटा रूह कब्र में।
जन्नत का जैसे कोई नवाब है।
**ऋषिकेश खोड़के "रूह"**