महानगर का काव्य

ऋषिकेश खोङके "रुह"

Saturday, November 1, 2025

भीड़ में तन्हा रहता है (ग़ज़ल)

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भीड़ में तन्हा रहता है । ख़ुद से वो उलझा रहता है।। एक समंदर है आँखों में । दिल मगर प्यासा रहता है।। ज़ख़्म जो हो गर सीने में। उम्र-भर ताज़ा र...
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Sunday, October 26, 2025

त्रिवेणी

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(1) तेरे विरह के मोती हैं शायद, ये घास की पलकों पर चमकते, अहसास कुछ गीले लग रहे हैं |
Saturday, September 13, 2025

इवोल्यूशन थ्योरी

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एक दिन सपने में देखा एक सपना, वो जो डार्विन है ना अपना, एक लाल मुंह के बंदर से गप्पे लड़ा रहा था, गप्पे क्या लड़ा रहा था , अपना ज्ञान जबरन उ...
Monday, September 8, 2025

कितना सुंदर लगता हैं (ग़ज़ल)

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कितना सुंदर लगता हैं। कोई पैकर* लगता हैं।। हँस कर बातें करना भी। फूँका मंतर लगता है।। दिल से दिल की दूरी का। ज्यादा अंतर लगता है।। आँखों से ...
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Tuesday, September 2, 2025

ज़िंदगी मुश्किल सफ़र है (ग़ज़ल)

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ज़िंदगी मुश्किल सफ़र है। ढूंढना मंज़िल सफ़र है।। गर तलाश-ए-हक़ इरादा। फिर सफ़र काबिल सफ़र है।। दास्ताँ जो राह कहती । बस वहीं हासिल सफ़र है।। चाँद...
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Saturday, August 30, 2025

दिल लगाना (ग़ज़ल)

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दिल लगाना नहीं मुझको, कुछ गँवाना नहीं मुझको। चाक मेरा गिरेबाँ है, पर दिखाना नहीं मुझको। राग दीपक सुनाता हूँ, अब बुझाना नहीं मुझको। एक महब्बत...
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Saturday, August 16, 2025

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हाथ दो, दो पैर वाला एक जिस्म है । आदमी भी जानवर की एक किस्म है ।।
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