महानगर का काव्य

ऋषिकेश खोङके "रुह"

Wednesday, June 4, 2025

ज़िंदगी (ग़ज़ल)

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जिंदगी तू कमाल  है ।   तोहफा बेमिसाल है ।।   खुद से खफा हों किसलिए ।   हर घड़ी ये सवाल है ।।      ठोकरें लाख राह  में   रोक सकें मजाल  है ।।...
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Saturday, May 31, 2025

इतना हत-बल किसलिये (ग़ज़ल)

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इतना हत-बल किसलिये। सत्य निर्बल किसलिये? धर्म धंधा हो चुका । अब गंगा जल किसलिए? कर्म तो बे मोल हैं । जात पर बल किसलिए? भीख में हक़ मांगते। ल...
Friday, May 30, 2025

शब्द

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 भावना मेरी   शब्दों के सहयोग से, अभिव्यक्त होती हैं जब, कविता हो जाती । कोई शब्द  अश्रु हो जाता है, शब्द कोई कभी  हृदय का स्पंदन। कभी कभी श...
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Sunday, May 25, 2025

**गोबरहा** (लघु कथा)

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(धीमे स्वर में प्रारंभ) प्राचीन भारत का गांव—सोनपुरा। उपजाऊ ज़मीन, खेत जैसे सोना उगलते हों। ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय—सब ऐश्वर्य में डूबे। प...
Saturday, May 24, 2025

कुछ गलत कुछ सही है (ग़ज़ल)

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कुछ गलत, कुछ सही है । जिंदगी तो यही है ।। दंभ की भीत देखो । बीच रिश्ते खड़ी है ।। चीख़ गूँगों की सुनिए। वेदना से भरी है।। गाँव की देहरी भी अ...
Thursday, May 22, 2025

**मन का चोर**

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मन का चोर मंजीरा बजाये, भीतर भेद चुरा ले जाये। राम नाम जाप सवेर करै वो, रातें तम की फिर भी न जाये। काया मंदिर, रूह है दीपक, नाम की बाती अलख ...
Wednesday, April 30, 2025

दिल लगाने का (ग़ज़ल)

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दिल लगाने का इनआम देना पड़ा। अपने अहसास को नाम देना पड़ा।। थरथराई ज़बां, लड़खड़ा भी गई । आँख को होंठ का काम  देना पड़ा ।। हसरतों की तपिश में ...
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