Monday, July 28, 2025

रुत सावन की आई (गीत)

मित्रों **सावन रुत** का पर्दापण हो चुका हैं और ये रुत जैसे रिमझिम वर्षा और हरियाली की द्योतक हैं उसी प्रकार काव्य के संसार में ये **विरह की रुत** मानी जाती हैं जहां प्रकृति न सिर्फ धरा अपितु मन को भी सींचती है और जहां पिया की याद और विरह को भारतीय परिपेक्ष में प्राचीन काल में इस रुत में महिलाओं के पीहर जाने से जोड़ा जाता है।
प्रस्तुत है सावन रुत के विरह  भाव पर मेरी रचना ।

रुत सावन की आई सखी री,
जीयरा लागे अब ना पीहरवा।

पिया नगर से आयो रे उड़के,
रिमझिम रिमझिम मेघा बरसे,
अकुलाया मन पिया को तरसे,
हाल सजन का बताओ बदरवा ।

जीयरा लागे अब ना पीहरवा।

झूला परे सब अमुवा की डारि,
खेलें हिंडोला अब सखियां सारी,
उठत नाही , पग मोरे हुवे भारी,
रह रह मोहे आवे, याद सजनवा।

जीयरा लागे अब ना पीहरवा।

पोखरे भरे सब, बगिया हरियाई,
मोर नाचे और धरिनि इठलाई ,
जीयरा मोरा पर हाय चैन न पाई,
पग पीहर मोरे मन सासुरवा।

जीयरा लागे अब ना पीहरवा।

पगवा छम छम बाजे पैजन,
गीत मलहार सुनावे सावन,
कब तक बाट निहारूँ साजन,
प्रान निकसत जात बिरहवा।

जीयरा लागे अब ना पीहरवा।

Saturday, July 26, 2025

बस इक ख़ज़ाना चाहिए (ग़ज़ल)

बस इक ख़ज़ाना चाहिए।
दिल में ठिकाना चाहिए।।

तन्हा बहलता दिल नहीं ।
कोई फ़साना चाहिए।।

ग़म राग जैसे भैरवी ।
गा कर सुनाना चाहिए।।

आँसू मिरे बहते जहाँ।
तीरथ बनाना चाहिए ।।

ख़त की सियाही खून थी।
उसको बताना चाहिए ।।

अल्फ़ाज़ बैठे रूठ कर।
अब दिल लगाना चाहिए।।

यह "रूह" के अश'आर है।
सबको पढ़ाना चाहिए।।

Wednesday, July 2, 2025

दुआओं में असर (ग़ज़ल)

ये दुआओं में असर होता हैं क्या ।
देखते हैं मांग कर होता हैं क्या ।।

रात काटी जाग कर, बेकल रहा ।
कुछ नहीं दिल को ख़बर होता है क्या।।

भूलना उसको तिरे बस में नहीं ।
ढूँढ ऐसा भी हुनर होता है क्या ।।

अश्क भी तो ज़हर है, बहता हुआ।
देखिए इसका असर होता है क्या।।

लब जले, साँसें जलीं, दिल भी जला ।
खाक होने से मगर होता है क्या ।।

चांद लगता है, कभी सूरज लगे।
टोटका शाम ओ सहर होता हैं क्या।।

‘रूह’ साहब अब नहीं मुमकिन सुख़न।
लफ़्ज़ नाख़ुश तो असर होता है क्या ।।

Sunday, June 22, 2025

**पांडुरंग हरी**

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

पुंडरीक निवेदन का जिसने मान रखा,
कमर रख कर हाथ, हुआ ईंट पर खड़ा,
भक्त की मांग पर सदा वहीं बस गया
जाती पंथ छोड़ के, प्रेम डोर बांध ली ।

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

नामा के पुकारा उसको, तुका ने पुकारा,
ज्ञानोबा माऊली ने तन मन धन उतारा,
जन जन के मन आंगन, पांडुरंग जगाया,
गाते नाचते अब सब करे वारी पंढरी ।

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

जात पात कोई नहीं, नहीं तुच्छ महान ,
आत्मा सब एक है,विठुराया का ज्ञान ,
वारकरी का पांडुरंग, माऊली ही प्राण,
तर जाए डोर जो माऊली की थाम ली।।

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

पंढरी का विठ्ठल, सदा भक्तों के साथ,
भक्त पुकारे जब , पाए विठ्ठल साक्षात,
कहे "रूह" सबके मनकी, पांडुरंग को ज्ञात,
दुख हरे, हरे पीड़ा, प्राचीती विठू नाम की ।

श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल , 
श्री हरी विट्ठल,श्री हरी विट्ठल ।
भक्तों का सखा वो, भक्तों की माऊली ।।

Thursday, June 19, 2025

पत्नी की तारीफ (शादी की सालगिरह विशेष)

अपनी शादी की सालगिरह सोचा काव्यमय मनाऊं ।
चैट जीपीटी से  पत्नी की तारीफ में कविता लिखवाऊं।

चैट जीपीटी को ओपन कर बोला,
भाई पत्नी की तारीफ में चार पंक्तियां बताना।

चैट जीपीटी बोला 

महोदय !
समग्र अंतरजाल खाली पड़ा है,
ऐसा कोई उदाहरण नहीं वहां है,

आप के पास ही कोई शब्द है,
तारीफ का तो बतलाना !
खामखां मुझसे झूठ ना बुलवाना।

Tuesday, June 10, 2025

नटखट कन्हैया

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।
गगरीया फोर देत नटखट कन्हैया ।।

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।

भीगी मेरी अंगिया, भीगी मेरी चोली ,
कितना सहूं मुए कान्हा की ठिठोली ,
अखियां दिखाऊं तो और इतराए है,
हाथ उगराऊं तो पकड़ ले बहियां।।

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।

चरखी बंधी कभू,काट देत पगहा ,
चुटिया खींचें कभू खींचें चुनरवा,
कूद जात कूप कभी लेकर ग्वाले,
बिपदा ही जनमि ये गोकुल नगरिया।

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।

ठाडे रहें पथ में , घोर उधम मचावे,
कभू मोहे कभू मोरी सखियां सतावे,
काहू जतन माई, कर अपने लला का,
सर फोर दूंगी मैं लेकर लकड़ियां।।

पनिया भरन कूप जाऊं कैसे मईया ।

Wednesday, June 4, 2025

ज़िंदगी (ग़ज़ल)

जिंदगी तू कमाल  है ।  
तोहफा बेमिसाल है ।।  

खुद से खफा हों किसलिए ।  
हर घड़ी ये सवाल है ।।  
  
ठोकरें लाख राह  में  
रोक सकें मजाल  है ।।  
  
जीत पड़ाव आख़िरी ।  
हार तो एक  ख्याल है।।  
  
जिस्म को रूह छोड़ कर ।
जाए कहां सवाल है ।।