Sunday, December 15, 2024

गंध

शब्द! 
मात्र गंध होते हैं,
हृदय में उपजती अनुभूतियों की गंध।

ये गंध,
सुगंध है की दुर्गंध?
अवलंबित है इस पर की 
किसी परिस्थिति विशेष में,
आपके हृदय की भावनाएं क्या है,
वो कौन सी अनुभूति है
जो मुझको, तुमको नियंत्रित करती हैं 
क्या ये भावनाएं 
किसी मीर या किसी निराला के उद्यान से है 
या फिर किसी विक्षिप्त के 
नराधम सड़े हुए मस्तिष्क की कुंठा के बांसी अवशेष।

हर परिस्थिति में 
शब्द व्यक्त हो जाते है 
गंध बन कर बिखर जाते है 

मैने भी अनेकों बार 
अपनी अनुभूति के शब्दों की गंध
सहेजी है कविता का इत्र बना कर
और ये मेरी कविता ,
मात्र सूचीपत्र है 
मेरी उन सारी कविताओं का,
जो पन्नों से उड़ कर 
अपनी गंध फैलाने को तत्पर है।

कभी समय मिले तो
मेरी कविताओं के इत्र की गंध सूंघे जरूर,
गंध! 
सुगंध है कि दुर्गंध 
ये मैं आप पर छोड़ता हूं।

Wednesday, October 30, 2024

दिल के सहरा में (ग़ज़ल)

दिल के सहरा में तू बारिश  कर दे।
बस पूरी इक मेरी ख्वाइश कर दे।।
दर्द-ए-दिल बह जायेगा आँखों से ।
डर है कोई ना फरमाइश कर दे।।
आमादा हूं खाने को हर धोखा ।
गर चाहे तो कोई साज़िश कर दे।।
कह ना पाया मैं लफ़्ज़ों में तुमसे ।
फ़रमाइश पूरी वो दानिश कर दे।।
जी में जी आ जायेगा चारागर।
अपनी आँखों में तू जुंबिश कर दे।। 
रूह-ए-आलम बन के जो बिखरा है ।
छू ले जिसको उसको ताबिश कर दे।।

तेरा मेरा ख़ुदा (ग़ज़ल)

गुल पत्ते ये हवा अलग कैसे है ।
तेरा मेरा ख़ुदा अलग कैसे है ।।
है इक ही रंग लाल, सबके ख़ूँ  का।
हम सारे फिर बता अलग कैसे है ।।
नदियां नाले सभी फ़ना दरिया में ।
अपना फिर रास्ता अलग कैसे है।।
ढलते ही शाम घर दिया जलता है 
कह दे ना ये दुआ अलग कैसे है।
इक मंजिल रूह अलहदा हैं राहें।
फ़िरकों का राब्ता अलग कैसे है।।

Tuesday, October 29, 2024

कसे प्रेमात मन(मराठी ग़ज़ल)

कसे प्रेमात मन वाहून गेले |
तुझ्या हृदयात ते राहून गेले ||
मला सोडून तू जाणार कोठे |
जगच सगळे तुला पाहून गेले ||
कळल जस आज तू येणार दारी |
कितींदा दार मी पाहून गेले ||
प्रितीचे बोल ते ऐकायचे  बस |
मला तर वेड हे लागून गेले ||
कशाला हाथ सुटले गुंफलेले |
मनाचे "रूह" सुख हरवून गेले ||

Sunday, October 27, 2024

ग़म न इतना सहा कर (ग़ज़ल)

ग़म न इतना सहा कर ।
बात दिल की कहा कर ।।
धड़कनों की कहानी ।
लफ़्ज़ बन के कहा कर।।
ख़्वाब तो फूल हैं बस ।
खाद पानी किया कर।।
ज़िन्दगी इक सफ़र है ।
मुस्कुरा के चला कर।।
अश्क अपने छुपा कर।
होंठ से तब्सिरा कर।।
आँख में ख़्वाब अपने ।
उम्र भर रख सजा कर।।
आरसी सच न कह दे।
हौसला रख बना कर।।
क्यों उदासी में जीना।
मन करे तो हँसा कर।।
जो नहीं साथ तेरे ।
राह उनसे जुदा कर।।
फ़ासिला बढ़ न जाए।
पास दिल के रहा कर।।
तीरगी ख़त्म करने ।
रौशनी से मिला कर।।
बोझ कर दिल का हल्का ।
अश्क अपने बहा कर।।
रूह का हम-सफ़र तू ।
साथ उसके चला  कर ।।

Friday, October 25, 2024

हिंडोला

हिंडोला झूलत मोरे आँगनवा, 
मनवा हमार ललचाय ।
चल री सखी झूलन को झूला 
पुरवा ये खींच बुलाय।।

बैठ जइबे संग तुम्हरे सखी,
झूलब हम भी सनन-सनन।
गगन छुअत ज्यों हिंडोला ,
बढ़त जाय सखी धरकन ।
देख सखी नटखट ये पुरवा,
हाथन लट सहलाए।
हिंडोला झूलत मोरे आँगनवा, 
मनवा हमार ललचाय ।

संग संग यूं झूलत झूलत,
गाएं हम कजरी गीत ।
सरर सर काट पबन को,
रस्सी झूले की दे संगीत।
पकड़ रख पर हाय दईया,
लहंगा हमारवा लहराय ।
हिंडोला झूलत मोरे आँगनवा, 
मनवा हमार ललचाय ।

ए सखी! रस्सा रख पकड़े,
जोर लगाईं हम दोउ पारे।
गगन तक उड़ावें झोंका,
चल पगवा पंख लगा ले ।
छू कर आवे चल सूरजवा ,
मनवा खूब ललचाय।
हिंडोला झूलत मोरे आँगनवा, 
मनवा हमार ललचाय ।

Tuesday, October 15, 2024

टिकट व्यवस्था

भगवान भी देख कर हंसता है,
मेरे दर्शन को टिकट व्यवस्था है।
दीन के नाम पर खून की होली,
किस ने बताया, ये कौन सा रस्ता है।
दूध तेल की गंगा, नाली में बहती,
सड़क किनारे कोई भूख से खस्ता है।
रोटी के लालच में जो बदला दीन,
या तो मै सस्ता हूँ या दीन सस्ता है
नाम अलग दुकान सारी एक सी ,
मूर्ख इंसान देख कर भी फंसता है।