Saturday, December 30, 2023

वाणी का चिंतन गहन करें। (ग़ज़ल)

वाणी का चिंतन गहन करें।
शब्दों का उचित चयन करें।।
उम्र से अपनी बड़ा हो कोई।
झुका कर सर नमन करें।।
दग्ध हो जायेगा जीवन सारा।
अहम अपना दहन करें।।
आने वाली पीढ़ी के खातिर।
आओ प्रकृति का जतन करें।।
अद्भुत समस्त ये संसार है।
जाइए इसमें भ्रमण करें।
ऊंच नीच जात पात धरम।
विष ये समस्त वमन करें।
सलाह नही रूह के विचार।
इच्छा हो तो आप ग्रहण करें।

Monday, December 18, 2023

परों को आजमा के देखो। (ग़ज़ल)

परों को आजमा के देखो।
ऊंचाइयों पे जा के देखो।।
कोई आवाज़ नही उठेगी।
बस्तियों को जला के देखो।।
कब्जे में हैं फुटपाथ भी।
चादर तो बिछा के देखो।।
फुटपाथ पे मरी सर्दी।
चादर को हटा के देखो।।
परिंदे आ ही जायेंगें।
दरख्तों को लगा के देखो।।
किसी का टिफिन बॉक्स है।
कूड़े के पास जाके देखो ।।
कोई सुन ले रूह शायद
शोर में चिल्ला के देखो।

Thursday, December 14, 2023

धूप को छांव (ग़ज़ल)

धूप को छांव कहना सीख लिया है।
हर हाल में रहना सीख लिया है।।
कब तक रोक सकोगे तुम उसको।
जज़्बात ने बहना सीख लिया है।।
अम्मा ने पूछा हाल, ब्याही बेटी का।
बोली वो अब सहना सीख लिया है।।
तवारीख़ धुंधली पड़ने लगी तो ।
इमारत ने ढहना सीख लिया है 
मानिंदे मोती रूह पिरोये आसूं 
उसने ये गहना सीख लिया है।।

Saturday, December 9, 2023

दिल में हमारे (ग़ज़ल )

दिल में हमारे रह कर तो देखो।
छोटी जगह में बड़ा घर तो देखो।।
हम तो मुंतज़िर हैं जाने कब से।
उठाओ नज़रे, ज़रा इधर तो देखो ।।
नज़रें मिलाकर नजरें छुपाना।
दिल चुराने का हुनर तो देखो।।
बड़ी छोटी सी इक अर्ज है हमारी।
साथ हो ज़िंदगी का सफ़र तो देखो।।
बड़ा ध्यान देकर सुनते हैं वो।
रूह की शायरी का असर तो देखो।।

आरामपसंद (ग़ज़ल)

आरामपसंद भी हो जायेंगे ।
बिस्तर पर बांस के सो जायेंगे।।
ख्वाहिशें कुछ अब भी बाकी है।
और यम कहता है चलो जायेंगे।।
दुआ मांगों देख डूबता सितारा।
अरमान मुकम्मल हो जायेंगे।।
ख्वाबों को अपने जिंदा रखना।
वक्त की आंधी में ये खो जायेंगे।।
भेड़ चाल में फंस कर रह गए।
अकेले अब कहीं चलो जायेंगे।।
कुछ घूंट बचे हैं ज़ीस्त के साकी।
अब पीकर हम इसको जायेंगें।।
रूह कहे सब अजर अमर है।
सिर्फ बदल जिस्म ही तो जायेंगे।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Tuesday, November 21, 2023

सांसें हैं लिया करो।

सांसें हैं लिया करो।
थोड़ा सा जिया करो।।

ज़िंदगी शराब है ।
थोड़ी सी पिया करो।।

जवाब आ जायेगा।
गुफ्तगू किया करो।।

चाक है ,नुमायां है।
गरेबां सीया करो।

नामे रूह आसां है।
लबों से लिया करो।।

Friday, November 10, 2023

चलिए उनसे बात करेंगे

चलिए उनसे बात करेंगे।
ज़ाहिर दिले-जज़्बात करेंगे।

इश्क शायद होगा मुश्किल ।
कोशिश हम दिन रात करेंगे।।

खड़े हैं दर पर ले के झोली ।
हुज़ूर आयेंगे ख़ैरात करेगें।

भरे पड़े हैं आखों के बादल।
जाने कब बरसात करेंगे।।

तैयार होकर रूह खड़े हैं।
मालुम है वो घात करेंगे

Saturday, October 14, 2023

सफर कोई हो, मंज़िल तुम्ही हो।

सफर कोई हो, मंज़िल तुम्ही हो।
हर राह का , हासिल तुम्ही हो।।
दरिया हूं आखिर कहां जाऊंगा।
मेरी मौजों का साहिल तुम्ही हो।।
तफ्तीश का ढोंग क्यू करते हो।
मुमतहिन, मेरे कातिल तुम्ही हो।।
आज़मा कर देखे जाने कितने।
आखिर पाया की कामिल तुम्ही हो।।
रिश्तों की गरमी जो बनाए रखे ।
रूह इतने काबिल तुम्ही हो।।


कामिल : संपूर्ण 
मुमतहिन : जाँचने वाला

Wednesday, September 13, 2023

बदले हुए हैं मंजर

बदले हुए हैं मंजर हम ख़ामोश है।
सब आंखों में समंदर हम ख़ामोश है।।
नफ़रतें ज़हन में बसेरा कर चुकी।
देख हाथों में खंजर हम ख़ामोश है।
जंगल पर्वत नदिया बर्बाद कर चुके।
जमीं हो रही बंजर हम ख़ामोश है।।
शमशीर ली उठा जो काटे नाखून।
कर दुनियां खंडर हम ख़ामोश है।।
हालात बदलना मुश्किल भी नहीं।
पर मान के मुकद्दर हम ख़ामोश है।।

**ऋषिकेश खोडके "रुह"**

Monday, August 28, 2023

लाख कह दो तुम की ख़राब

लाख कह दो तुम की ख़राब है।
मुझे सुकूं देने वाली शराब है ।।
मसला जो उसने ,दिल था मेरा।
शायद सोचा महज़ गुलाब है ।।
क्यूं भटकता है दिले- आवारा।।
इश्क कुछ और नही सराब है।।
करो कोशिश पढ़ के देखो तो।
ज़िंदगी मेरी खुली किताब है।।
बड़े थाट से लेटा रूह कब्र में।
जन्नत का जैसे कोई नवाब है।
**ऋषिकेश खोड़के "रूह"**

Wednesday, August 23, 2023

चांद पाने की ख़्वाहिश कर के देखो।

चांद पाने की ख़्वाहिश कर के देखो।
हौसले की आज़माइश कर के देखो।।
क्या पता दिल तुमको दे ही बैठे।
एक बार फ़रमाइश कर के देखो।।
कोई कीमत नही है जज्बातों की ।
चाहो तो कभी नुमाइश कर के देखो।।
दो गज जमीं भी अब कहां हासिल है।
कब्रिस्ता की पैमाइश कर के देखो।।
वो चांद पर जमीं ढूंढते हैं रूह ।।
तुम भी ज़रा सिफ़ारिश कर के देखो।।

ज़िंदगी अपनी ख़ाक करते रहे।

ज़िंदगी अपनी ख़ाक करते रहे।
तजुर्बात हम लाख करते रहे।।
आगे बढ़ने की चाहत थी उनको
किस किस को वो बाप करते रहे।
अब बैठे हैं आपके सामने तो
आप के नाम का जाप करते रहे
वादों करके भुला भी दिया तुमने
मुरीद गरेबाँ चाक करते रहे।।
झुलसने से जब लगे जज़्बात।
रूह शायरी को आब करते रहे।।

मुझमें कुछ तेरे जैसा रहता है।

मुझमें कुछ तेरे जैसा रहता है।
मैं तेरी धड़कन हूं ये कहता है।।
अश्क नही है ये तो बस पानी है।
एक समंदर आंखों से बहता है।।
मुझ से मत पूछिए हिज्र के माने।
बरसों से यही तो दिल सहता है।।
झूठे ही सही हमको तुम पुकारों तो।
कहां कोई आसमान यूं ढहता है ।।
"रूह" के जैसे है कोई मस्त मलंग।
बस अपनी ही धुन में रहता है ।।

फासिला दरमियान इतना तो न था

फासिला दरमियान इतना तो न था।
सोचा था तूने जितना उतना तो न था ।।
जानते हो नज़र उठेगी तो ज़रूर।
फिर मेरे ही सामने रुकना तो न था।।
नशा हुस्न का खुद मालूम है तुमको  ।
बज्म में फिर तुम्हे दिखना तो न था ।।
गुजर गया मैं, तुझे खबर भी नहीं।
खुद की मुहब्बत में चितना तो न था।।
खुद को वो रूह खुदा समझ बैठेंगे।
इस तरहा सामने झुकना तो न था ।।

Friday, July 14, 2023

हमारी नदियां मर रहीं हैं।

हमारी नदियां मर रहीं हैं।
देखता हूं की पानी की जगह,
हमारे ही मल मूत्र से भर रहीं है।

दो पीढ़ी पुराने जो बचे हैं लोग,
कहते हैं कि,
हम कभी नहाते थे इन नदियों में,
प्यास भी इसी पानी से बुझा लेते थे।
पास के गांव की महिलाए,
घड़ों में भर के ले जाती थी पानी।
मछुआरे जाल डाल कर,
कतला, रोहू, सिंघाल पकड़ा करते थे,
झींगा, केकड़ा
तो बच्चे भी पकड़ ले जाया करते थे अक्सर।

एक दादाजी कहते हैं,
नाव में कई बार आते थे वो दादी के साथ,
और घंटो नाव पर सिंघाड़े खाते हुवे बिताते थे,
रोमांटिक डेट कह लो आज के हिसाब से।

पिछली पीढ़ी वाले भी कहते हैं,
कुछ साल तो वो भी नदी मैं खेलें है,

फिर क्या हूवा पता नही,
अचानक आधुनिकता की बयार चली,
कंक्रीट के जंगल बढ़ते चले गए,
और भूख इतनी बढ़ी की,
की हम नदियों के किनारे भी खा गए,
नदी में उतरने वाली,
नालों, झरनों की पगडंडियों खो गई !
बदले में हमने ड्रेनेज पाइप उतार दिए,
नदी की छाती पर।

और अब !

अब 
हमारी नदियां मर रहीं हैं।
देखता हूं की पानी की जगह,
हमारे ही मल मूत्र से भर रहीं है,
इंसानों के क्या ही कहने,
मछलियां भी अब,
अपनी ही नदी में
उतरने से डर रही है।

हमारी नदियां मर रहीं हैं।





Friday, July 7, 2023

ग़ज़ल

बातों में तेरी जायका हरबार अलग है।
कुछ तो बात है तुझमें जो यार अलग है।।
जख्म नही होता लेकिन दिल में चुभते हैं।
ज़ालिम ये तेरी आंखों के औजार अलग हैं ।।
रहने दे चरागर के दवा काम की नहीं ।
ये मर्ज अलग है, तेरा बीमार अलग है।
झूठे तेरे वादें है सारे हम को है मालूम।।
कह तू चाहे जितना की इस बार अलग है।।
मौसम बहारों का रूह आता है जाता है।
तू साथ है तो अब की ये बहार अलग है।।

Thursday, June 29, 2023

बातें

मुझे समझ नही आती दिखावटी बातें।
चेहरे से लिपटी हुई ये सजावटी बातें ।।
फूट ही जानें दो गुबार दिल का अपने।
आने दो लब पे थोड़ी बगावती बातें।।
लफ्जों की लागलपेट बस की नही मेरे ।
कर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।
हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।
डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।
ना कोई औलिया ना कोई पीर फकीर।
रूह पर करता है बड़ी करामती बातें ।।

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Tuesday, June 27, 2023

शहरों पर मुझको एतबार कोई नही

शहरों पर मुझको एतबार कोई नही ।।
ईंट के मकां लेकिन घरबार कोई नही ।।
नकली फूल, नकली पत्ते कैसा गुलिस्तां है।
कोई खिजां नही यहां, बहार कोई नही।।
आख़िरी सफर को बैठे हैं रोक कर सांसे।
अर्थी को पर कांधा देने, कहार कोई नही ।।
हाकिमों के वादों से अब ऊब सी होती है।
लगता है कह दूं, अब की बार कोई नही।।
आलमी तौर-तरीको से नावाकिफ हूं बस।
लगे दुनियां को रूह सा गंवार कोई नही ।।

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Wednesday, June 7, 2023

ग़ज़ल

आप बताइये क्या आपकी नज़र करूं ।
शाम रख दूं सामने या पेश सहर करूं।।
यकबयक आप आ गए यूं मेरे सामने ।
दूर चेहरे से अब कैसे ये नजर करूं ।।
दिल तो लोग कहते हैं मेरा, हुआ आपका।
बताईये और क्या आपके नाम पर करूं।।
आपे मै नहीं हूं, आपके हुस्न का नशा है ।
दीजिए बक्श, कोई खता मैं अगर करूं।।
बस एक छोटी सी इल्तिज़ा है रूह की ।
साथ आपके तय ज़िंदगी का सफर करूं
*ऋषीकेश खोडके "रूह"**

ग़ज़ल

हुक्मरान भी आजकल डरने लगे है ।
भले लोगों से कैदखाने भरने लगे हैं।।
मुकदमा तुम कर तो रहे हो वाइज।
गवाह पर बयानों से मुकरने लगे हैं।।
लगता है चुनाव कहीं आस पास ही है ।
हालत मेरे मुहल्ले के सुधरने लगे है ।।
मानसून नहीं , बेमौसम की बारिश है ।
गड्ढे सड़कों पे अभी से निकलने लगे है ।।
ज़माने अच्छे देखें हों, रूह ऐसा भी नही।
हालात पर अब जरा खटकने लगे है।।

*ऋषीकेश खोडके "रूह"*

ग़ज़ल

ज़िंदगी से मुझे मलाल कुछ नही ।
हो किसी को मुझे सवाल कुछ नही।।
कोई वाइज होगा , आलिम होगा ।
मैं मलंग मेरी मिसाल कुछ नही।।
के मौत आयी और हम मर गए ।
सौच मत इसमें कमाल कुछ नही ।।
खून जलता है तो बनती ग़ज़ल।
शेरों में मेरे बेख्याल कुछ नही ।।
देखो रूह ज़रा औरों की हालत।
बेहतर हो तुम ये हाल कुछ नही ।।
कर गुजरा मै जो जी में आया ।।
रुह आसां सब मुहाल कुछ नही ।।
*ऋषीकेश खोड़के "रूह"* 

Wednesday, April 19, 2023

ग़ज़ल

जाने क्या क्या सिखाती है ज़िंदगी ।
अक्सर आइना दिखाती है ज़िंदगी ।।
जो है खुद के पास कम लगता है ।
दूसरे की बड़ी सुहाती है जिंदगी।।
ठहरे से लगे पल खुशियों के जब ।।
यकायक तब रुलाती है जिंदगी।।
मुश्किलात से ताउम्र राहत नहीं।
शनि की जैसे साढ़े साती है ज़िंदगी ।।
ख्वाहिशें जज़्ब कर दिन गुजारा।
वही ख्वाब में दिखाती है ज़िंदगी।।
अच्छा बुरा सोचो पर ख्याल रहे।
अपनी सोच की बैसाखी है जिंदगी ।।
संभाल सको इसे तो संभालो "रूह"।
गई तो फिर नही आती हैं ज़िंदगी ।।

Tuesday, April 18, 2023

ग़ज़ल

किताबों में गुलाब सुखा हुआ, तेरी याद दिलाता है।
रुमाल तेरा वो घर भूला हुआ, तेरी याद दिलाता है।।
इक रोज़ गिरा था उलझकर जो दुपट्टे से तेरे ।।
फूलदान भी वो टूटा हुआ, तेरी याद दिलाता है।।
लहराती जुल्फों से तेरी ,अक्सर लिपटा रहता था ।
गजरा किसी चोटी में गूंथा हुआ, तेरी याद दिलाता है।।
दिन भर जाने कितने चेहरों से, होता हूं रूबरू ।
चेहरा पर कोई रूठा हुआ, तेरी याद दिलाता है।।
जज्बाते-दिले-रूह कभी ढल ना पाए अल्फाजों मे।
खत वो अधूरा लिखा हुआ,  तेरी याद दिलाता है ।।

Friday, April 7, 2023

गजल

हुस्न तेरा कोई शराब हो जैसे।
दीदों को आबे गुलाब हो जैसे ।।
तुफ़ किया देख कर अनदेखा।
चेहरे पे कोई हिजाब हो जैसे ।।
लफ्जों की रवानी यूं लबों से ।
की बजता कहीं रबाब हो जैसे।।
जुंबीश-ए-चश्म के माने हजार ।
हर अदा कोई किताब हो जैसे ।।
सिलसिला दिल हारने का रूह ।
क़ल्ब-ए-हज़ीं का खिताब हो जैसे ।।

***ऋषीकेश खोड़के "रूह"***

दीदों : आखों 
आब : पानी 
तुफ़ : लानत
जुंबीश-ए-चश्म : आखों की हरकत 
क़ल्ब-ए-हज़ीं : उदास ह्रदय

रूहानी

इबादतगाहों मै बैठ कर,
लोबान के खुशबूदार धुएं के बादलों के बीच,
सब कुछ आपको रूहानी लग सकता है!
या माशूक की आंखों के समंदर में,
डूब जाना बड़ा रूमानी और रूहानी हो सकता है।
मगर
कैसे ये चश्मा!
पहनाऊं मै उनको ?

की जिनको
चांद माशूका सा खूबसूरत नही 
रोटी सा लज़ीज़ मालूम होता है,

की जिनके नाक,
कचरें की बदबू से भर नही जाती,
बल्की वो उसी कचरें से 
ट्रीट निकाल लाते है।

की जिनको,
प्लेस्टेशन प्लेजर का कुछ पता नहीं,
पंचर साइकिल का निकला हुवा पहियां
डंडी से घुमाते हुवे वो अटारी का गेम हो जाते हैं।

की जिनको,
पता नही मलमल की गर्म रजाई क्या होती हैं,
बेचारे चादर के छेद,
घुटने के निचे दबा कर ,
सर्द रातों में कोशिश करते हैं की
बर्फीली हवा रुक जाए शायद।

की जिनको,
कच्ची उम्र में 
छोड़ गया कोई किसी रेड लाइट एरिया में,
और अब मजबूर हैं जिस्म के सौदों के लिए
मरते दम तक,

किस्से बहुत है,
लाखों कहानियां हैं 

क्या रूहानी है इनके लिए
शायद!
जिंदा रहना

**ऋषीकेश खोड़के "रूह"**

Sunday, April 2, 2023

अशआर

बस जिक्र तेरा ही रूहानी है मेरे लिए ।।
बाकी तो सब दुनिया फानी है मेरे लिए ।।


दूर तक जिन्दगी का सफर कर लिया है ।
लगता नही था करेंगे मगर कर लिया है ।।
और कब तक आखिर रखोगे यूं बैठा कर ।
काफ़ी है जितना हमने सबर कर लिया है ।।


मर गया तो लौट कर आऊंगा।
भूत बनकर सबको सताऊंगा।
गज़लों को मेरी दाद दे देना तुम।
वरना छाती पर चढ़ जाऊंगा ।।

इंतज़ार आखिर कितना करवाओगे।
अब क्या गंगा जल पिलाने आओगे।।
सुबह से बैठा हूं बिछा कर पलकें ।
के जब ढलेगा दिन तब तुम आओगे।।
दिल में एक छोटी सी जगह चाहता हूं।
तुम कहते हो भीड़ में कहां समाओगे।।

गम से बाहर निकलना किसको है।
तू नही तो फिर संभलना किसको है।।

अपने पास रहने दीजिए।
थोडा सा ख़ास रहने दीजिए।
वक्त हमारा भी आएगा कभी।
छोटी से आस रहने दीजिए।

**ऋषिकेश खोडके "रुह"**


Sunday, March 5, 2023

रंजिश है तो सामने से निभा

 रंजिश है तो सामने से निभा,

खंजर को मेरी पीठ ना दिखा ।।

ईमान तू रख दे बाजार में, 

देखें तो सही किस दाम बिका  ।।

कितना डरता है अल्फाजों से,

तख्त तेरा किस बात से हिला ।।

नफरत फैला तू चाहे जितनी,

हम नही देंगे बदलने फिज़ा ।।,

बयाने-रुह तो ना-फानी  है,

कर कोशिश, मिटा सके, मिटा ।।

Monday, February 27, 2023

तेरी यादों का स्वेटर

 आज फिर,

दिल की अटैची से,

नसाफत से तह किया हुआ,

तेरी यादों का स्वेटर निकाला है ।


अब भी तेरी खुशबू इसमें महकती है ।


मुझे उम्मीद है,

ऐसा एक स्वेटर,

तेरे पास भी होगा।


धूप में मत रखना, महक चली जाएगी।

जहन से तेरी तस्वीर हटाऊं कैसे

 जहन से तेरी तस्वीर हटाऊं कैसे |

सांस है तू, फिर लेना भूल जाऊं कैसे ||

मिनट में सौ बार धड़कता है लैकिन |

दिल की धड़कन तुम्हे सुनाऊं कैसे ||

कान्हा तो नही मैं पर बांसुरी तुम हो |

रख तो लूं होठों पर, बजाऊं कैसे  ||

लानत भैजो गर नजर हट जाएं।।

हुस्न पर पलकें झपकाऊं कैसे ।।

जो कहे रूह , कमबख्त कम है  ।

बयाने हुस्न को अल्फाज लाऊं कैसे ।।

***ऋषिकेष खोडके "रूह"***

Monday, January 16, 2023

अमृत

 तेरी यादों से

महकने को अनंतकाल तक,


सोचता हूं,


चांद की रोशनी में भीगा हुवा,

एक कटोरी दूध,

शरद पुनम की रात पी लूं,


सुना है उस दिन ,

चांद की रोशनी से,

अमृत बरसता है 

**ऋषिकेश खोड़के "रूह"****