Wednesday, April 24, 2024

ग़ज़ल (ज़िंदा लेकिन मरे हुए हैं)

ज़िंदा लेकिन मरे हुए हैं ।
देखो कितना डरे हुए हैं ।।
सड़कों पर रेंगता भरोसा ।
झूठे वादे पड़े हुए हैं ।।
रखना दुश्वार काबू खुद को ।
सब गुस्से से भरे हुए हैं ।।
उम्मीदें क्या क़तील को हो ।।
कातिल हाकिम बने हुए हैं ।।
कह दे अशआर रूह बाग़ी ।
शा'इर सारे डरे हुए हैं ।।
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बह्र :
हज़ज मुसद्दस अख़्र्म उश्तुर महज़ूफ़
मफ़ऊलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
222 212 122