Friday, July 27, 2007

हां ! मैं तन बेचती हूं, तो क्या ?

मैं तन बेचती हूं !
हां ! मैं तन बेचती हूं, तो क्या ?

इस मंडी मे डाल गया था कोई अपना ही ,
कच्ची कली ही थी तब मै,
मुझे तो था कुछ भी पता नही |

उम्रभर का ग्रहण ,
मेरे जीवन पर लगा गया,
रातो को किसी की करने रोशन |

कई दिन और रातें भुखी ही काटी थी,
बेल्ट,लात और मुक्को से थर्थराई थी,
आखीरकार जोरजबरदस्ती से नथ किसी ने उतरवाई थी |

अब रोज़ कोई ना कोई जानवर,
नोचता है , खसोटता है जिस्म मेरा,
मर्द साले सब आदमखोर |

क्यो नहीं पुछते इनसे ,
जिन्होने अपन ज़मीर बेच डाला,
मैं तन बेचती हूं, तो क्या ?

Monday, July 23, 2007

अरे रुक जा रे बन्दे

अरे रुक जा रे बन्दे,

वो मर चुका है ,
वो जल चुका है |
अब आग लगाते हो कहाँ,
था आशीयाँ जिसका वो गुज़र चुका है |

बंद कर ये लहू बहाना,
नफरत की फसल उगाना,
काट ये आग उगलते नाखून,
जाने कितनी जिंदगी खुरच चुका है |

छाती तेरी कब ठंडक पायेगी,
मुर्दो की बस्ती तुझे कब तक भायेगी,
ये सफेदी का काला रंग कहां तक उडायेगा,
तेर घर भी रंग ये निगल चुका है |

अरे रुक जा रे बन्दे, रुक जा,
वापसी का दरवाजा हमेशा खुला है |