Wednesday, March 27, 2024

ग़ज़ल

दिल तुझ से लगाया गुनाह किया।
तुझको खुदा बनाया गुनाह किया।।
पता न था के हो जाएगा कलम।
सजदे सर झुकाया गुनाह किया ।।
भूल गया था दाग चांद पर भी है  ।
तुमको चांद बुलाया गुनाह किया।।
मोती से आंसू खाक मे मिले जाते हैं।
तुमने मुझे रुलाया गुनाह किया ।। 
ग़ज़ल इक तुम पर भी लिख देता।
दिल "रूह" का दुखाया गुनाह किया।।

Monday, March 4, 2024

अग्नि के अविष्कारक

अभी पिछले शनिवार किसी चेनल पर कास्ट अवे सिनेमा देखा और उसका एक दृश्य जहाँ नायक अनेक प्रयासो के बाद आग जलाता है , मुझे सोच में डाल गया की आखिर अग्नि अथवा आग का मानव के लिए पहली बार आविष्कार किसने किया ?
आइये इस विषय पर थोडा विचार-विमर्श और खोज की जाये |
विचार करें तो आपको ख़याल आएगा की विकास की अवस्था में जब मानव भी लगभग अन्य जंगली प्राणियों जैसा ही था तो शायद वह भी आग से डरता होगा और विकास की प्रक्रिया में जब देवी-देवताओं का विचार नया ही था , उसका अविकसित मस्तिष्क इसे कोई देवीय घटना मान बैठा होगा | आज भी संसार के सभी विकसित और अविकसित समाजों में अग्नि का सम्बन्ध देविक कार्यो से किसी न किसी प्रकार से जुड़ा हुआ है |
मानव के प्रारंभिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं की कल्पना करते हुवे सहज ही ख्याल आता है की सर्वप्रथम अग्नि का उपयोग मानव ने अकस्मात् दुर्घटनावश ही किया होगा | अग्नि के अकस्मात् उपयोग के जो प्रारंभिक कारण मुझे प्रतीत होता है वो शायद जंगल की आग के चपेट आये हुवे किसी प्राणी का भक्षण है | इस प्रकार शायद मानव ने जाना होगा की आग में पका कर मांस अधिक रुचिकर और खाने में आसन होता है और फिर वो जब भी संभव होता होगा अर्थात जब भी कही अचानक प्राकृतिक कारण से आग लगती होगी , मांस और शायद अन्य प्रकार के जंगली अनाज भी पकाता होगा | अभी भी मानव प्राकृतिक रूप से लगाने वाली आग पर ही निर्भर था , पर धीरे-धीरे आग से उसका भय जाने लगा होगा और मानव ने संभवत: आग को चिरस्थाई रूप से जलते रहने की व्यवस्था के बारे में सोचा होगा |
विचार करें की क्या किया होगा उसने ? आसान था की किसी जलती हुई लकड़ी को एक स्थान जैसे किसी गड्डे में या गुफा में जहाँ हवा से आग बुझ न जाए , स्थापित कर दिया गया होगा और निरंतर आग के जलाने के लिए उसमे सूखीं लकड़ियाँ डाली जाती होगी | इस जलती हुई अग्नि ने जल्द ही देवता का रूप ले लिया और अनेक कर्मकांड इसके लिए रचे गए जो आज भी चल रहे है

कबीले के रूप में चलने वाले समाजों में जब भी एक समूह शिकार पर जाता या कबीला छोड़ कर नया कबीला स्थापित करता था या पलायन करता था तो इस अग्नि में से एक जलती हुई लकड़ी ले जाता था | बाद में जातियों के एकमेव स्थाई अग्नि के साथ हर परिवार अपनी स्थाई अग्नि भी रखने लगा होगा | कई समाजो और विलुप्त सभ्यताओ में यह प्रथा उनके अंत तक बनी रही और आज भी कई समाजों में यह नियम इसी प्रकार कार्य करता है जिसे प्रथा का नाम दिया जाता है | उदारहण के लिए माया और पेरू , पारसी, ग्रीक सभ्यताएँ अपने पिरामिडो/मंदिरों में स्थाई आग जला रखते थे और यहूदी सिनेगोग और कैथोलिक गिरिजाघरों में 'अखंड दीप' आज भी होते है | भारत में लगभग प्रत्येक स्थान पर अखंड ज्योत रखने के अनेक कर्मकांड सदियों से चल रहे है , जैसे नवरात्र के दिये अथवा नंदादीप और दरगाहों और साधुओं के स्थान पर अखंड धुनी | इन सब के पीछे कारण , यही हमारे पूर्वजों की आदिम स्मृति है |
अब अखंड ज्योत की व्यवस्था के बाद , मानव ने संभवत: आग की उत्पति के कारणों पर ध्यान देना शुरू किया होगा और जल्दी ही समझा लिया होगा की आकाश से गिरने वाली बिजली से लगने वाली आग के अलावा अन्य कारणों से जैसे सूखी लकड़ियों के घर्षण और दो पत्थरों के आपस में टकराने इत्यादि से भी आग उत्पन्न होती है और यदि वो ये कर सके तो हर स्थान पर जलती हुई आग ढोने की जरूरत नहीं है |
पर कैसे , यदि आप प्राकृतिक साधनों से आग जलाने का प्रयत्न करें , जिस प्रकार कास्ट अवे का नायक करता है तो आप को समझ आएगा की ये कार्य इतना आसान नहीं है जितना लगता है और वो भी तब जब आप प्राकृतिक साधनों का वैज्ञानिक रुप से उचित प्रयोग जानते है | अतः प्राचीन मानव के लिए ये कार्य किसी भी प्रकार से आसान नहीं रहा होगा और प्रारंभ में अनेक प्रयासों और बहुत सारा समय लगने के बाद उसे ये सफलता मिलती होगी |

जहाँ तक मै समझता हूँ , आदिम कबीला व्यवस्था में जहाँ शिकार के लिए समूह के प्रत्येक सदस्य का कोई सुनिश्चित कार्य बटा होता है , इस कार्य के लिए भी समूह का कोई सदस्य निश्चित किया गया होगा | समूह का जो सदस्य आग जलाने का कार्य करता होगा , निश्चित ही समूह में पुरोहित का रुतबा पा गया होगा क्योकि उसने आग पर विजय पा ली थी और वो आग जलाने के एक या एक से ज्यादा उपाय जनता था | आग पर इस विजय ने मानव के लिए भविष्य के नए द्वार खोल दिये और अब मानव इसका उपयोग मात्र खाना पकाने के आलवा अनेक कार्यो में कर सकता था |
आग पर विजय पाने वाले इस व्यक्ति को हम आग का अविष्कारक कह सकते हैं | पर ये था कौन ?

संसार में फैली विभिन्न मानव सभ्यता के इतिहास चिन्ह इस विषय पर प्रायः मौन ही है , पर भारतीय आर्य सभ्यता का विश्वप्रसिद्ध ग्रन्थ ऋग्वेद इस व्यक्ति के विषय में न सिर्फ कुछ बताते है बल्कि इस अग्नि पर वो किस प्रकार अधिकार करता है इस पर भी प्रकाश डालते हैं | इसके अलावा ग्रीक पुराण कथा भी इस विषय पर कुछ प्रकाश डालती है पर इस कथा पर भी कुछ-कुछ संस्कृत का प्रभाव विद्वान बताते हैं |
आग की खोज विश्व के विभिन्न भू-भागों में मानव द्वारा विभिन्न रीतियों से की होगी और यह ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा होगा पर विश्वप्रसिद्ध आर्य ग्रन्थ ऋग्वेद में इस खोज को सहेज कर रखा गया और कम से कम आर्यों के के लिए आग के अविष्कारक का नाम हमें इससे प्राप्त हो सकता है |
ऋग्वेद के अनुसार ऋषि अथर्वन अग्नि के अविष्कारक हैं |
अग्निर्जातो अथर्वणा विदद विश्वानि काव्या | भुवद दूतोविवस्वतो वि वो मदे परियो यमस्य काम्यो विवक्षसे || अर्थात् अथर्वन् द्वारा आविर्भूत हे अग्नि, आप सब स्तवनों के ज्ञाता हैं ।....... (ऋ. १०.२१)
इममुत्यमथर्ववदग्नि मन्थन्ति वेधस:'' अर्थात् हे अग्नि, विद्वान आपका मन्थन करते हैं, जैसा कि अथर्वन ने किया ।
उपरोक्त वेद मन्त्रो में ऋषि अथर्वन का उल्लेख किया गया है और ऋग्वेद एवं अन्य वेदों में इस प्रकार अनेक मन्त्र है
ऋषि अथर्वन को अग्नि के अविष्कारक होने के कारण अंगिरस भी कहा जाता है और इन्ही के नाम से अग्नि का मंथन करने वाले पुरे जाति समूह को अंगिरस नाम से ख्याति मिली तथा वे अग्नि के वंशज मने गए | अंगिरस अग्नि के अविष्कारक होने के कारण समाज में उच्च स्थान के अधिकारी थे और इन्हें समाज में सम्मान प्राप्त था | इन्ही अंगिरस कुल के एक ऋषि घोर-अंगिरस श्री कृष्ण के आचार्य थे |

वेद मंत्रो से प्राप्त जानकारी के आधार पर अथर्वन प्रथम ऋषि हैं जिन्होंने अग्नि को मुख्यता लकड़ी पर मंथन अथवा रगड़ के द्वारा खोजा और एसा प्रतीत होता है की अंगिरस नाम से जाने वाली इस जाति ने अग्नि-मंथन के कार्य में महारथ प्राप्त कर ली थी और इसीलिए जलते हुवे कोयले का नाम अन्गिरसों के नाम पर अंगार पड़ा | वैदिक कथाओ के अनुसार अंगिरस न सिर्फ मंथन से अपितु पत्थरों के आपस में घर्षण से भी आग उत्पन्न करना जानते थे और इसीलिए वो हमेशा ही काष्ठ पर निर्भर नहीं थे अपितु परिस्तिथि अनुसार अन्य उपायों से भी आग जला सकते थे |
वेदों , पुरानो व अनेक प्राचीन आख्यानो में अन्गिरसों से सम्बंधित रूपक कथाएं हैं जो उपरोक्त विधियों का वर्णन कराती है |
महाभारत कथा बताती है की जब अग्नि तपस्या के लिए वन में चली गई तो ऋषि अथर्वन ने अग्नि को मनाया और उनके धर्मपुत्र बन गए अर्थात जब वन से आपने-आप जलने वाली अग्नि बुझ गई तो अंगिरस ने काष्ठ-मंथन के द्वारा अग्नि उत्पन्न कर ली | एक दूसरी कथा कहती है की अग्नि समुद्र में जा छिप गई , लगता है यहाँ किसी जल-प्रलय की बात की जा रही है जिसमे अखंड अग्नि का विलोप हो गया तब फिर अंगिरस ने अग्नि उत्पन्न कर ली | यजुर्वेद कहता है की हम धरती को खोद कर उसकी गोद से अग्नि निकले (यजु. ११.२१) अर्थात धरा का उत्खन कर चकमक में पत्थर प्राप्त करें और उससे आग जलाएं | रुग्वेद के एक मन्त्र के अनुसार ऋषियों ने मंथन के लिए एक उपकरण भी बना लिया था (ऋ. ३.२९. १-12)|.

अस्तु कम से कम अब हम अग्नि के अविष्कारक हमारे भारतीय पूर्वज का नाम तो गर्व से सब को बता ही सकते हैं |

लेख : ऋषिकेश खोङके