Sunday, September 30, 2007

मन के हाइकु


सोचा बहूत ,
निर्विचार ही रहा
उदास मन |

हवा से तेज,
दौडा मन पखेरु,
स्थिर ही रहा |

अक्षर झरे,
विलोपे रूप सारे,
रहा तो मन |

रुके ना मन ,
जल थल आकाश,
सहसा चले |

सहस्त्रधार,
काया एक अनेक,
एक ही मन |