Wednesday, April 17, 2024

ग़ज़ल

तूफाने ज़ीस्त में जलना नहीं आसाँ।।
गिर के फिर से संभलना नहीं आसाँ।।
क्या तेरे मिरे,जज़्बात हैं सबके ।
इन्हें अल्फ़ाज़ में बदलना नहीं आसाँ।।
सुरत बदलकर मिलते हैं सभी सब से ।
हमेशा चेहरा बदलना नहीं आसाँ।।
ज़रूरत तो इक दलदल गहरा सा है।
फंसे तो बाहर निकलना नहीं आसाँ।।
भरे बाज़ार हैं मौका-परस्तों से ।
यहां ईमान पे पलना नहीं आसाँ ।।
कभी तो वक़्त बदलेगा है उम्मीद।
हमेशा हसरत कुचलना नहीं आसाँ।।
बुलंदी रूह सौदा बहुत मुश्किल।
बुलंदीयों पे संभलना नहीं आसाँ।।

बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222

1 2 2    2 1   2  2 2    12। 22
तू फा ने ज़ी स्त में जलना नहीं आसाँ।।
1 2      2। 2 1 2 2 2 1222
गिर के फिर से संभलना नहीं आसाँ।।

12 22 12।  2 2 1   2 2 2
क्या तेरे मिरे। जज़्बात हैं सबके ।
12 2 2 1      2   2 2 1222
इन्हें अल्फ़ाज़ मेंब दलना नहीं आसाँ।। *में का वज़न गिराया है।

1 2    2   2   1 2   2  2 1 2 2    2
सु रत बद लक र मिलते हैं सभी सब से
1 2 2   2  1 2      2    2 1 222
हमेशा   चे। ह राब। दल ना नहीं आसाँ।। *रा का वज़न गिरायाहै

122     2  1 2  2    2   12 22
ज़रूरत तो इकद लद लग हरा सा है।
12   2 2  1  2   2   2  1222
फंसे तो बा ह रनिकलना नहीं आसाँ।।

1 2 2 2 1 2     22 1 2 2  2
भरे बा ज़ार सब मौका-परस्तों से
1 2 2 2 1 2 22   1 2  22
यहां ईमान पे पलना नहीं आसाँ।।

1 2  2     2 1 2  2  2 1 2. 22
कभी तो। वक़्त बद ले। गा है उम्मीद। +1 नियम, गा का वजन 
122   2   1 2    2  2    1222
हमेशा हस र तकु चलना नहीं आसाँ।।

1 2 2 2 1  2 2   2  1  222
बुलंदी  रूह सौदा। बहुत मुश्किल।
1 2 2 2 1  222     1222
बुलंदी यों पे संभलना नहीं आसाँ।।

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

Anonymous said...

कभी तो वक़्त बदलेगा है उम्मीद।
हमेशा हसरत कुचलना नहीं आसाँ।।

Alaknanda Singh said...

वाह क्या शानदार बात कही....भरे बाज़ार हैं मौका-परस्तों से ।
यहां ईमान पे पलना नहीं आसाँ ।।
कभी तो वक़्त बदलेगा है उम्मीद।
हमेशा हसरत कुचलना नहीं आसाँ।।...बहुत खूब

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर