Wednesday, April 19, 2023

ग़ज़ल

जाने क्या क्या सिखाती है ज़िंदगी ।
अक्सर आइना दिखाती है ज़िंदगी ।।
जो है खुद के पास कम लगता है ।
दूसरे की बड़ी सुहाती है जिंदगी।।
ठहरे से लगे पल खुशियों के जब ।।
यकायक तब रुलाती है जिंदगी।।
मुश्किलात से ताउम्र राहत नहीं।
शनि की जैसे साढ़े साती है ज़िंदगी ।।
ख्वाहिशें जज़्ब कर दिन गुजारा।
वही ख्वाब में दिखाती है ज़िंदगी।।
अच्छा बुरा सोचो पर ख्याल रहे।
अपनी सोच की बैसाखी है जिंदगी ।।
संभाल सको इसे तो संभालो "रूह"।
गई तो फिर नही आती हैं ज़िंदगी ।।

Tuesday, April 18, 2023

ग़ज़ल

किताबों में गुलाब सुखा हुआ, तेरी याद दिलाता है।
रुमाल तेरा वो घर भूला हुआ, तेरी याद दिलाता है।।
इक रोज़ गिरा था उलझकर जो दुपट्टे से तेरे ।।
फूलदान भी वो टूटा हुआ, तेरी याद दिलाता है।।
लहराती जुल्फों से तेरी ,अक्सर लिपटा रहता था ।
गजरा किसी चोटी में गूंथा हुआ, तेरी याद दिलाता है।।
दिन भर जाने कितने चेहरों से, होता हूं रूबरू ।
चेहरा पर कोई रूठा हुआ, तेरी याद दिलाता है।।
जज्बाते-दिले-रूह कभी ढल ना पाए अल्फाजों मे।
खत वो अधूरा लिखा हुआ,  तेरी याद दिलाता है ।।

Friday, April 7, 2023

गजल

हुस्न तेरा कोई शराब हो जैसे।
दीदों को आबे गुलाब हो जैसे ।।
तुफ़ किया देख कर अनदेखा।
चेहरे पे कोई हिजाब हो जैसे ।।
लफ्जों की रवानी यूं लबों से ।
की बजता कहीं रबाब हो जैसे।।
जुंबीश-ए-चश्म के माने हजार ।
हर अदा कोई किताब हो जैसे ।।
सिलसिला दिल हारने का रूह ।
क़ल्ब-ए-हज़ीं का खिताब हो जैसे ।।

***ऋषीकेश खोड़के "रूह"***

दीदों : आखों 
आब : पानी 
तुफ़ : लानत
जुंबीश-ए-चश्म : आखों की हरकत 
क़ल्ब-ए-हज़ीं : उदास ह्रदय

रूहानी

इबादतगाहों मै बैठ कर,
लोबान के खुशबूदार धुएं के बादलों के बीच,
सब कुछ आपको रूहानी लग सकता है!
या माशूक की आंखों के समंदर में,
डूब जाना बड़ा रूमानी और रूहानी हो सकता है।
मगर
कैसे ये चश्मा!
पहनाऊं मै उनको ?

की जिनको
चांद माशूका सा खूबसूरत नही 
रोटी सा लज़ीज़ मालूम होता है,

की जिनके नाक,
कचरें की बदबू से भर नही जाती,
बल्की वो उसी कचरें से 
ट्रीट निकाल लाते है।

की जिनको,
प्लेस्टेशन प्लेजर का कुछ पता नहीं,
पंचर साइकिल का निकला हुवा पहियां
डंडी से घुमाते हुवे वो अटारी का गेम हो जाते हैं।

की जिनको,
पता नही मलमल की गर्म रजाई क्या होती हैं,
बेचारे चादर के छेद,
घुटने के निचे दबा कर ,
सर्द रातों में कोशिश करते हैं की
बर्फीली हवा रुक जाए शायद।

की जिनको,
कच्ची उम्र में 
छोड़ गया कोई किसी रेड लाइट एरिया में,
और अब मजबूर हैं जिस्म के सौदों के लिए
मरते दम तक,

किस्से बहुत है,
लाखों कहानियां हैं 

क्या रूहानी है इनके लिए
शायद!
जिंदा रहना

**ऋषीकेश खोड़के "रूह"**

Sunday, April 2, 2023

अशआर

बस जिक्र तेरा ही रूहानी है मेरे लिए ।।
बाकी तो सब दुनिया फानी है मेरे लिए ।।


दूर तक जिन्दगी का सफर कर लिया है ।
लगता नही था करेंगे मगर कर लिया है ।।
और कब तक आखिर रखोगे यूं बैठा कर ।
काफ़ी है जितना हमने सबर कर लिया है ।।


मर गया तो लौट कर आऊंगा।
भूत बनकर सबको सताऊंगा।
गज़लों को मेरी दाद दे देना तुम।
वरना छाती पर चढ़ जाऊंगा ।।

इंतज़ार आखिर कितना करवाओगे।
अब क्या गंगा जल पिलाने आओगे।।
सुबह से बैठा हूं बिछा कर पलकें ।
के जब ढलेगा दिन तब तुम आओगे।।
दिल में एक छोटी सी जगह चाहता हूं।
तुम कहते हो भीड़ में कहां समाओगे।।

गम से बाहर निकलना किसको है।
तू नही तो फिर संभलना किसको है।।

अपने पास रहने दीजिए।
थोडा सा ख़ास रहने दीजिए।
वक्त हमारा भी आएगा कभी।
छोटी से आस रहने दीजिए।

**ऋषिकेश खोडके "रुह"**