घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार, अली री !
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
चमक-चम-चम बिजुरीया चमके,
छमक-छम-छम पानी की बौछार, अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
कल-कल-कल-कल,संगीत नदी का,
सर-सर-सर-सर , करे आम की डार, अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
हरीतिमा ओढे, बैठी धरती लजाई,
और सतरंगी श्रावन करे श्रुंगार , अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
पंख फैलाये वन नाचे मयूरा
पिहु-पिहु-पिहु-पिहु, पपीहे की पुकार , अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार
Wednesday, June 18, 2008
सावन रुत आयी
सावन रुत आयी
रिमझिम मेघा बरसे,
मेह झरे अंबर से,
घनाघन घन गरजे,
हरीतिमा है छायी |
पीहू-पीहू बोले पपीहा,
कुहू-कुहू कोयलीया,
हर्षाये धरा का जीया,
तन जो बुंदे भिगायी |
बहे झरने झर-झर ,
करे समीर फर-फर,
आकाश से आयी उतर,
अमृता गंगा मायी
रिमझिम मेघा बरसे,
मेह झरे अंबर से,
घनाघन घन गरजे,
हरीतिमा है छायी |
पीहू-पीहू बोले पपीहा,
कुहू-कुहू कोयलीया,
हर्षाये धरा का जीया,
तन जो बुंदे भिगायी |
बहे झरने झर-झर ,
करे समीर फर-फर,
आकाश से आयी उतर,
अमृता गंगा मायी
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