Wednesday, January 31, 2024

कवि की मृत्यु

सोचता हूं जब 
मुझ जैसी कवि की मृत्यु आएगी
स्वर्ग की ट्रेन, नरक की ट्रेन
सवारी कहां की टिकिट पाएगी।

बड़े पुण्य किए हों हमने 
अब ऐसा भी नहीं है ,
पाप लेकिन
तथाकथित पुण्यत्माओं जितने भी नहीं है।

कहीं ऐसा तो नहीं होगा ?
काउंट कम होने के कारण,
आत्मा त्रिशंकु जैसा अधर में लटका होगा।
न स्वर्गवासी न नरकवासी की
उपाधि आयेगी।
अरे पूजा में पंडितो की जमात पर
मेरे नाम के आगे पर स्वर्गवासी ही लगाएगी।
इस झूठे प्रमाणपत्र के चक्कर में
आत्मा यमपुरी के चक्कर लगाएगी।
मुक्ति न मिलेगी तो,
सबको भूत बन कर सताएगी,
फिर आत्मा शांति के लिऐ
कवियों की मंडली शायद
मेरे स्मरण में कवि सम्मेलन करवाएगी,
बॉस पर गारंटी कुछ नही की इससे
आत्मा शांति पाएगी।
व्यतिथ हो कर हो सकता है आत्मा 
किसी शरीर में प्रवेश कर जायेगी,
और
और
और
खुद कविता सुनाएगी
यमलोक तक आवाज जायेगी
कौन बचा है कवियों से ,
यम की भी शामत आएगी
मुझे लगता है दो चार कविताओं में ही 
यमपुरी कंपकंपा जायेगी,
कवि की आत्मा तभी मुक्ति पा जायेगी
अंततः स्वर्गवासी कहलाएगी।

Tuesday, January 30, 2024

मस्जिद में ना वो मंदर मिला (ग़ज़ल)

मस्जिद में ना वो मंदर मिला।
उसे जो ढूंढा वो अंदर मिला।।
सच खोजने को गए जहां भी।
बस झूठों का समंदर मिला ।।
इंसा की बस्ती में दश्त से आए।
बड़ा खौफनाक मंजर मिला।।
अन अल हक़्क़ सदा पे मंसूर।
फंदा हमेशा गले पर मिला।।
जात पात और धर्म के नाम।
नही कुछ सिवा बवंडर मिला।।
देखा जो मैने माज़ी में सबके।
पुरखों के नाम बंदर मिला।।
बोझ कितना "रूह" न पूछों।
मन मन भर मन पर मिला ।।

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Wednesday, January 10, 2024

शह और मात का खेल है (ग़ज़ल)

शह और मात का खेल है।
राजनीति बड़ी चुड़ैल है।।
कांधे पर जुआ ज़िंदगी का
आदमी कोल्हू का बैल है।।
भीड़ ही भीड़ दूर तलक ।
सब और रेलम पेल है।।
अपने जी का करोगे कैसे।
दूसरों के हाथ नकेल है।
मन का घड़ा भरता नहीं।
क्या किसी के पास गुलेल है।।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Saturday, January 6, 2024

जो भी कहना मिल कर कहना। (ग़ज़ल)

जो भी कहना मिल कर कहना।
नहीं पीठ पीछे, मुंह पर कहना।।
न रखना कुछ दिल मे अपने।
कहना जो भी खुल कर कहना।।
खो जाए जहां खुर के निशान।
उसे गांव नहीं शहर कहना ।।
जो बह रहा,  सब मल मूत्र है।
नदी नही इसे गटर कहना।।
सही गलत सबको पता रूह।
चाहे ना कोई मगर कहना।।