सोचता हूं जब
मुझ जैसी कवि की मृत्यु आएगी
स्वर्ग की ट्रेन, नरक की ट्रेन
सवारी कहां की टिकिट पाएगी।
बड़े पुण्य किए हों हमने
अब ऐसा भी नहीं है ,
पाप लेकिन
तथाकथित पुण्यत्माओं जितने भी नहीं है।
कहीं ऐसा तो नहीं होगा ?
काउंट कम होने के कारण,
आत्मा त्रिशंकु जैसा अधर में लटका होगा।
न स्वर्गवासी न नरकवासी की
उपाधि आयेगी।
अरे पूजा में पंडितो की जमात पर
मेरे नाम के आगे पर स्वर्गवासी ही लगाएगी।
इस झूठे प्रमाणपत्र के चक्कर में
आत्मा यमपुरी के चक्कर लगाएगी।
मुक्ति न मिलेगी तो,
सबको भूत बन कर सताएगी,
फिर आत्मा शांति के लिऐ
कवियों की मंडली शायद
मेरे स्मरण में कवि सम्मेलन करवाएगी,
बॉस पर गारंटी कुछ नही की इससे
आत्मा शांति पाएगी।
व्यतिथ हो कर हो सकता है आत्मा
किसी शरीर में प्रवेश कर जायेगी,
और
और
और
खुद कविता सुनाएगी
यमलोक तक आवाज जायेगी
कौन बचा है कवियों से ,
यम की भी शामत आएगी
मुझे लगता है दो चार कविताओं में ही
यमपुरी कंपकंपा जायेगी,
कवि की आत्मा तभी मुक्ति पा जायेगी
अंततः स्वर्गवासी कहलाएगी।