महानगर का काव्य
ऋषिकेश खोङके "रुह"
Sunday, October 26, 2025
त्रिवेणी
(1)
तेरे विरह के मोती हैं शायद,
ये घास की पलकों पर चमकते,
अहसास कुछ गीले लग रहे हैं |
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