Thursday, April 19, 2007

नयनो की भाषा बोलो तुम

नयनो की भाषा बोलो तुम
मूक ये बोली बडी निराली है |

शब्द व्यर्थ शोर करते है
अर्थ का अनर्थ करते है
प्रित की भाषा के फुल
यूं खिलने से डरते है

संवाद मे मद घोलो तुम
आंखे तुम्हारी मतवाली है |

गणीत व्याकरण का भूलो
मन के हिन्डोले झूलो
अपने अंतस की कोमल
भावनाओ के द्वार छू लो

करो दान सारी भावनाये
चक्षू ये कर्ण से दानी है |

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