Monday, May 21, 2007

मुझे देख कर

मुझे देख कर,
आप मेरे प्रेम मे पड सकते है ,
खो सकते है मेरी आँखो के समंदर मे |

मुझे देख कर,
आप मुझे दार्शनिक भी समझ सकते है,
मेरे भाव सुकरात की तरहा लग सकते हैं आप को |

मुझे देख कर,
आप घ्रृणा भी कर सकते हैं मुझ से,
मेरे अंदर का जानवर आप को डरा सकता है |

मुझे देख कर,
आपका मन वात्सल्य से भर आ सकता है,
आप मेरे अंदर किसी शिशु को पा सकते हैं |

मुझे देख कर,
आप को लग सकता है यही नायक है,
मेरे चेहरे का तेज आपका मस्तक झुका सकता है |

मुझे देख कर,
आप को दया भी आ सकती है,
मेरी दयनीयता आपको रुला सकती है |

मुझे देख कर,
कई विचार उठेंगे आपके मन मे ,
क्योकी मेरे आयाम अनंत है,और क्षमतायें अनंत
मैं क्रृष्ण भी हो सकता हूं,
और मैं रावण भी |

मुझे देख कर,
आप सोचते होंगे मैं कौन हूं ?
मैं हूं मानव !

12 comments:

  1. सभी बातें ठीक हैं, लेकिन आपकी इस रचना में काव्य रस नहीं है। अगर आप अलयबद्ध लिखते हैं तो यह भी ध्यान रखें कि उसमें प्रवाह की कमी न हो।

    ReplyDelete
  2. nirantrta sachmuch jroori hai taki pathak bore na ho

    subhkamnayen

    ReplyDelete
  3. ऋषिकेश आपकी रचनाए बहुत अच्छी होती है जैसे की आज लिखा ये सब तो मानव के गुण अवगुण है हीं मै कोई त्रुटी नही निकाल पाउंगी क्यूँकी अभी तक मै खू्द अल्पज्ञानी हूँ अपने आपको इतना सक्षम नही मानती की किसी कवि की रचनाओं मे गलतियाँ निकाल कर उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचाऊ..जबकी मै ये जानती हूँ मैने देखा भी है की अधिकतर लोग जो दुसरे के ब्लोग पेर टिप्पणी करते है कविता में ज्यादा से ज्यादा गलतियाँ ढूँढते कि कोशीश करते है...जबकी उनकी खुद कविता पेर ढेर सारी गलतियाँ होती है...
    मुझे माफ़ किजियेगा यदि किसी को चोट लगी हो मगर मै यही कह सकती हूँ आपने ऐक कवि हृदय से कविता लिखी है...बहुत सुंदर है...

    हाँ आपसे नाराजगी अवश्य है आपने मेरी प्रतियोगी कविता पेर अभी तक कोई टिप्पणी नही दी है..

    सुनीता चोटिया(शानू)

    ReplyDelete
  4. मानव के भीतर का आइना है यह कविता।बहुत अच्छी रचना है।

    ReplyDelete
  5. ऋषिकेश जी,
    आपकी रचना बडी भावपूर्ण है.. आपने सच ही लिखा है.. इस मानव की.. और मानव क्या मानव की प्रत्येक रचना को देख कर वही भाव उत्त्पन हो सकते हैं जो आपकी कविता के माध्यम से उजागर होते हैं.. लिखते रहिये

    ReplyDelete
  6. अच्छा प्रयास है आपका !

    ReplyDelete
  7. Manav ke kai roop aapne saamne rakhe hain..

    Aap accha likhte hain..

    ReplyDelete
  8. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  9. बहुत अच्छा प्रयास है ...आपकी यह सपाट कविता अच्छी लगी....बधाई

    ReplyDelete
  10. मेरे भाव सुकरात की तरहा लग सकते हैं आप को
    आपका मन वात्सल्य से भर आ सकता है,
    आप मेरे अंदर किसी शिशु को पा सकते हैं |
    क्योकी मेरे आयाम अनंत है,और क्षमतायें अनंत
    मैं क्रृष्ण भी हो सकता हूं,
    और मैं रावण भी |

    gud thoughts......a different topic to write n think about....keep writing bas aap Rishiji hi rahena ;) he he he

    ReplyDelete
  11. Dost tumhare lekhan ki daat deta hoon..
    its an appreciable job....
    but please dont mind...
    kuch aisa likho...
    jo aankhon se hotey hue...
    seedhe DIL me utar jaye....
    this one is very simple...
    there is nothing touching..
    waiting for the better one...
    piyush namdeo'amrit'

    ReplyDelete