'हिन्द-युग्म' पर 'काव्य-पल्लवन' के अंतरगत प्रकाशित मेरी नयी कविता "आधारभूत कारण है संवेदक मेरी वेदना" को पढ़ने और उस पर अपने विचार और टिप्पणियाँ देने के लिये, कृपया यहाँ पधारें:- आधारभूत कारण है संवेदक मेरी वेदना
मन बंजारा यहाँ-वहाँ डोल रहा है , सब खिड़की-दरवाज़े खोल रहा है | सीधी रेखा पर चलने की चाह मे , देखा तो धरा पर सब गोल रहा है | जहाँ से चला है वहीं पहूंचेगा , भटकता कहाँ है ,मन बोल रहा है | आसमाँ को छू लूं, इसी ख्वाहिश मे , कल्पना का पांखी परों को तोल रहा है | शब्द ना सही कोई आकार तो बने , इसलिए हाथ ये स्याही ढोल रहा हैं |