ऋषिकेश खोङके "रुह"
सोचा बहूत , निर्विचार ही रहाउदास मन |अच्छी लगी ।कृपया 'स्थीर' को सुधार कर 'स्थिर' कर लें ।- सीमा कुमार
मस्त लिखे हो!मजा आ गया "रुह"लिखते रहो...बहुत-बहुत बधाई!!!
अच्छा लिखा है बधाई
रुके ना मन ,जल थल आकाश,सहसा चले |बहुत अच्छे हाइकु बन पड़े हैं , रूह जी। भाव भी बेहतरीन हैं। बस एक जिज्ञासा थी। जहाँ तक मुझे ज्ञात है, हाइकु "५-७-५" के नियम का पालन करता है, तो इस अनुसार"विलोपे आकार सारे""शरीर एक अनेक"ये दोनों "आठ मात्रिक" हो गए हैं। कृप्या शंका का समाधान करेंगे।-विश्व दीपक 'तन्हा'
जी विश्व दीपक 'तन्हा'जी आप का कहना ठिक है ,मैं प्रयास करुंगा की इसे सुधार सकुं
अच्छी रचनायें है। तनहा जी का सुझाया परिवर्तन वांछित है।*** राजीव रंजन प्रसाद
अब सुधार के बाद बेहतरीन-संपूर्ण भाव के साथ. बधाई.
रूह जी,शुक्रिया , आपने मेरी सलाह पर ध्यान दिया । अब सारी खामियाँ दूर हो चुकी हैं। बधाई स्वीकारें।
बहूत अच्छा
सोचा बहूत ,
ReplyDeleteनिर्विचार ही रहा
उदास मन |
अच्छी लगी ।
कृपया 'स्थीर' को सुधार कर 'स्थिर' कर लें ।
- सीमा कुमार
मस्त लिखे हो!
ReplyDeleteमजा आ गया "रुह"
लिखते रहो...
बहुत-बहुत बधाई!!!
अच्छा लिखा है बधाई
ReplyDeleteरुके ना मन ,
ReplyDeleteजल थल आकाश,
सहसा चले |
बहुत अच्छे हाइकु बन पड़े हैं , रूह जी। भाव भी बेहतरीन हैं। बस एक जिज्ञासा थी। जहाँ तक मुझे ज्ञात है, हाइकु "५-७-५" के नियम का पालन करता है, तो इस अनुसार
"विलोपे आकार सारे"
"शरीर एक अनेक"
ये दोनों "आठ मात्रिक" हो गए हैं। कृप्या शंका का समाधान करेंगे।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
जी विश्व दीपक 'तन्हा'जी आप का कहना ठिक है ,मैं प्रयास करुंगा की इसे सुधार सकुं
ReplyDeleteअच्छी रचनायें है। तनहा जी का सुझाया परिवर्तन वांछित है।
ReplyDelete*** राजीव रंजन प्रसाद
अब सुधार के बाद बेहतरीन-संपूर्ण भाव के साथ. बधाई.
ReplyDeleteरूह जी,
ReplyDeleteशुक्रिया , आपने मेरी सलाह पर ध्यान दिया । अब सारी खामियाँ दूर हो चुकी हैं। बधाई स्वीकारें।
बहूत अच्छा
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