Tuesday, February 19, 2008

मतलब का शब्द

शब्दों के मतलब तो मिलते हैं,
मतलब का शब्द नहीं मिलता,
अक्षरों के मात्र संकर ही से,
अर्थ का फूल नहीं खिलता |

पत्थरों की पोशाकों के पिछे,
दरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
बाहर पैबंद खुबसुरत है,
कोई अंदर से नही सिलता |

फासलों की दिवारें सब जगह,
मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
बस एक फ़ासला नही गिरता |

12 comments:

  1. पत्थरों की पोशाकों के पिछे,
    दरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
    बाहर पैबंद खुबसुरत है,
    कोई अंदर से नही सिलता |

    फासलों की दिवारें सब जगह,
    मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
    लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
    बस एक फ़ासला नही गिरता |

    बहुत ही गहरी रचना है श्रीमान..

    बहुत बहुत साधूवाद्

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  2. फासलों की दिवारें सब जगह,
    मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
    लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
    बस एक फ़ासला नही गिरता |

    वाह बहुत खूब कहा है आपने...

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  3. वाह!

    यह हुई ना 'रूह' की 'रूह' तक पहुँचने वाली बात...

    मजा आ गया!

    फासलों की दिवारें सब जगह,
    मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
    लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
    बस एक फ़ासला नही गिरता |

    कड़वा सच! मगर फ़ासला गिरेगा... बस आप हम को, सबको मिलकर इसके लिये कदम बढ़ाने होंगे।

    बधाई!!!

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  4. Rishikesh ji,

    Bahut hi gahri baat aapane bahut aasaani se sunder shabdon mein keh di hae...
    पत्थरों की पोशाकों के पिछे,
    दरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
    बाहर पैबंद खुबसुरत है,
    कोई अंदर से नही सिलता |

    such yahi jo dikhta hae wo asal mein hota nahi hae.......

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  5. फासलों की दिवारें सब जगह,
    मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
    लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
    बस एक फ़ासला नही गिरता |

    आपने एक सच को शब्दों में डाल दिया
    साधुवाद

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  6. Sach kaha dost, aaj ke parivesh main, aadmi aadmi ka hi nahin raha.

    Bahut badiyan, keep it up.

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  7. बहुत ही गहरी बात कही है। उम्मीद रखिये कभी तो फासलों की दीवारें भी ढहेंगी।

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  8. दरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
    बाहर पैबंद खुबसुरत है,
    कोई अंदर से नही सिलता |
    bahut hi jaandaar andaz hai.. Bandhu.

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  9. Very touching.

    Keep it up.

    With best wishes

    Sachin Patwardhan

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  10. bahut accha maza aa gaya , akhiri panktiyan to gazab hi hain ...
    bahut bahut badhaii

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  11. बहुत बहुत बहुत ही लाजवाब!!!

    आशा है, आगे भी आपके द्वारा लिखी गयी रचनाए मिलती रहेगी.

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  12. ekdum fadtus kavita he mere bhai. mat likho. pagal samja he kya dusro ko. ata to kuch nhi nahi tuze acchese

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