शब्दों के मतलब तो मिलते हैं,
मतलब का शब्द नहीं मिलता,
अक्षरों के मात्र संकर ही से,
अर्थ का फूल नहीं खिलता |
पत्थरों की पोशाकों के पिछे,
दरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
बाहर पैबंद खुबसुरत है,
कोई अंदर से नही सिलता |
फासलों की दिवारें सब जगह,
मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
बस एक फ़ासला नही गिरता |
पत्थरों की पोशाकों के पिछे,
ReplyDeleteदरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
बाहर पैबंद खुबसुरत है,
कोई अंदर से नही सिलता |
फासलों की दिवारें सब जगह,
मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
बस एक फ़ासला नही गिरता |
बहुत ही गहरी रचना है श्रीमान..
बहुत बहुत साधूवाद्
फासलों की दिवारें सब जगह,
ReplyDeleteमुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
बस एक फ़ासला नही गिरता |
वाह बहुत खूब कहा है आपने...
वाह!
ReplyDeleteयह हुई ना 'रूह' की 'रूह' तक पहुँचने वाली बात...
मजा आ गया!
फासलों की दिवारें सब जगह,
मुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
बस एक फ़ासला नही गिरता |
कड़वा सच! मगर फ़ासला गिरेगा... बस आप हम को, सबको मिलकर इसके लिये कदम बढ़ाने होंगे।
बधाई!!!
Rishikesh ji,
ReplyDeleteBahut hi gahri baat aapane bahut aasaani se sunder shabdon mein keh di hae...
पत्थरों की पोशाकों के पिछे,
दरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
बाहर पैबंद खुबसुरत है,
कोई अंदर से नही सिलता |
such yahi jo dikhta hae wo asal mein hota nahi hae.......
फासलों की दिवारें सब जगह,
ReplyDeleteमुल्क,प्रदेश,जाति,पंथ,भाषा,
लाल रंग तो गिरे है इनके लिये,
बस एक फ़ासला नही गिरता |
आपने एक सच को शब्दों में डाल दिया
साधुवाद
Sach kaha dost, aaj ke parivesh main, aadmi aadmi ka hi nahin raha.
ReplyDeleteBahut badiyan, keep it up.
बहुत ही गहरी बात कही है। उम्मीद रखिये कभी तो फासलों की दीवारें भी ढहेंगी।
ReplyDeleteदरारें ही दरारें हैं सीनों मे,
ReplyDeleteबाहर पैबंद खुबसुरत है,
कोई अंदर से नही सिलता |
bahut hi jaandaar andaz hai.. Bandhu.
Very touching.
ReplyDeleteKeep it up.
With best wishes
Sachin Patwardhan
bahut accha maza aa gaya , akhiri panktiyan to gazab hi hain ...
ReplyDeletebahut bahut badhaii
बहुत बहुत बहुत ही लाजवाब!!!
ReplyDeleteआशा है, आगे भी आपके द्वारा लिखी गयी रचनाए मिलती रहेगी.
ekdum fadtus kavita he mere bhai. mat likho. pagal samja he kya dusro ko. ata to kuch nhi nahi tuze acchese
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