Thursday, June 29, 2023

बातें

मुझे समझ नही आती दिखावटी बातें।
चेहरे से लिपटी हुई ये सजावटी बातें ।।
फूट ही जानें दो गुबार दिल का अपने।
आने दो लब पे थोड़ी बगावती बातें।।
लफ्जों की लागलपेट बस की नही मेरे ।
कर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।
हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।
डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।
ना कोई औलिया ना कोई पीर फकीर।
रूह पर करता है बड़ी करामती बातें ।।

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

10 comments:

  1. बातें तो बातें है बातों का क्या।
    सुंदर गज़ल सर।
    सादर।
    --
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. कुछ तकनीकी कारणों से रिप्लाई नही कर पा रहा था। आपका का बहुत बहुत धन्यवाद

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    1. आपका का बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. लफ्जों की लागलपेट बस की नहीं मेरे ।
    कर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।
    -बहुतों के वश की नह्हीं बातें
    अच्छी लगी रचना

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    1. आपका का बहुत बहुत धन्यवाद

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  4. बेहतरीन ग़ज़ल ।
    वैसे आज कल ज़माना दिखावट का है ।

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    1. आपका का बहुत बहुत धन्यवाद

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  5. वाह!!!
    बहुत सुन्दर...
    लाजवाब।
    हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।
    डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।

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  6. आपका का बहुत बहुत धन्यवाद

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