मुझे समझ नही आती दिखावटी बातें।
चेहरे से लिपटी हुई ये सजावटी बातें ।।
फूट ही जानें दो गुबार दिल का अपने।
आने दो लब पे थोड़ी बगावती बातें।।
लफ्जों की लागलपेट बस की नही मेरे ।
कर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।
हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।
डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।
ना कोई औलिया ना कोई पीर फकीर।
रूह पर करता है बड़ी करामती बातें ।।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**
बातें तो बातें है बातों का क्या।
ReplyDeleteसुंदर गज़ल सर।
सादर।
--
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
कुछ तकनीकी कारणों से रिप्लाई नही कर पा रहा था। आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसुंदर गज़ल
ReplyDeleteआपका का बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteलफ्जों की लागलपेट बस की नहीं मेरे ।
ReplyDeleteकर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।
-बहुतों के वश की नह्हीं बातें
अच्छी लगी रचना
आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल ।
ReplyDeleteवैसे आज कल ज़माना दिखावट का है ।
आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
लाजवाब।
हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।
डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।
आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDelete