Thursday, December 14, 2023

धूप को छांव (ग़ज़ल)

धूप को छांव कहना सीख लिया है।
हर हाल में रहना सीख लिया है।।
कब तक रोक सकोगे तुम उसको।
जज़्बात ने बहना सीख लिया है।।
अम्मा ने पूछा हाल, ब्याही बेटी का।
बोली वो अब सहना सीख लिया है।।
तवारीख़ धुंधली पड़ने लगी तो ।
इमारत ने ढहना सीख लिया है 
मानिंदे मोती रूह पिरोये आसूं 
उसने ये गहना सीख लिया है।।

9 comments:

  1. सर,कृपया फॉलोअर्स बटन लगाएँ। ताकि जब आपकी रचनाएँ प्रकाशित हो तो ज्यादा से ज्यादा लोग उसे पढ़ सके।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. मुझे इस बारे में पता नही है की ये कैसे लगाएं, ढूंढता हूं।
      रचना साझा करने और सुझाव के लिए धन्यवाद्

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    2. मिल गया और 🔘 लगा दिया

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  2. लिखते रहें निरंतरता के साथ | सुन्दर |

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  3. बहुत सुंदर सृजन
    वाह!!!

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