Wednesday, April 3, 2024

ग़ज़ल

लौ-ए-इश्क़ को हवा न दे।
कही तुझको जला न दे।।
ज़िक्र-ए-इश्क नामंज़ूर।
कोई तुझको बता न दे।।
बांध कर रखो जुल्फों को।
बाद-ए-शोख उड़ा न दे।।
चांद फिरे है इतराता।
रूख तिरा कोई दिखा न दे।
न पूछ राजे-दिले-रूह।
चीर के सीना दिखा न दे।।

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