महानगर का काव्य
ऋषिकेश खोङके "रुह"
Wednesday, April 3, 2024
ग़ज़ल
लौ-ए-इश्क़ को हवा न दे।
कही तुझको जला न दे।।
ज़िक्र-ए-इश्क नामंज़ूर।
कोई तुझको बता न दे।।
बांध कर रखो जुल्फों को।
बाद-ए-शोख उड़ा न दे।।
चांद फिरे है इतराता।
रूख तिरा कोई दिखा न दे।
न पूछ राजे-दिले-रूह।
चीर के सीना दिखा न दे।।
4 comments:
आलोक सिन्हा
April 4, 2024 at 10:03 PM
बहुत सुन्दर
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सुशील कुमार जोशी
April 5, 2024 at 12:29 AM
वाह
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नूपुरं noopuram
April 5, 2024 at 6:48 AM
क्या बात है !
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हरीश कुमार
April 5, 2024 at 5:26 PM
बेहतरीन
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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteक्या बात है !
ReplyDeleteबेहतरीन
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