इक बार यूं हुआ की,
धरा पर
श्री नारद जी
मनुष्यों से टकरा गए।
असमंजस में पड़े,
हकबका गए।
सुर असुर यक्ष राक्षस
यूं तो हर एक को किया है परास्त ,
पर मनुष्य पर किसका वश,
वो है बड़ा खास।
इंसानों का पर देवलोक में भी
रिकॉर्ड बड़ा खराब है ।
इंद्र देव भी कहते हैं ,
इनके मुंह लगना भी पाप है।
उनके इंस्ट्रक्शनस बड़े कड़े हैं ,
उस राह से मत गुजरों,
इंसान जहां खड़े है।
पर मरते ना क्या करते
सामना मानव से हो चुका था
शीश झुकाए खड़े हैं मानव,
आशीर्वाद का समय आ पड़ा था।
डर था कुछ मांग ना ले उल्टा सीधा
स्वर्ग के अवैध कब्जे का
इंद्र जी को वैसे भी डर था।
जल्दबाजी में तुरंत दिया आशीर्वाद नारद जी ने ,
और अंतर्ध्यान हो गए,
आशीर्वाद में मनुष्यों को बनो
देव का दूत कह गए।
यहीं ! यहीं इस घटना को आया उपद्रव का स्वरूप
शीघ्रता में नारद जी ने नही बताया,
किस देव का दूत।
मनुष्य की मति देखो कितनी अद्भुत,
वो अब धरा पर बन बैठे हैं,
यमदूत यमदूत यमदूत।
यमदूत ...सच में।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
Dhanyawad Sweta ji
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जी
Deleteसमझ का फेर । कथा के रूप में संभव है यह बात याद रह जाए। अभिवादन ।
ReplyDeleteधन्यवाद नुपुर जी
Deleteसही कहा ...यमदूत बनकर अच्छी ड्यूटी निभा रहे ...
ReplyDeleteबहुत रोचक
वाह!!!
धन्यवाद सुधा जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आलोक
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