महानगर का काव्य
ऋषिकेश खोङके "रुह"
Saturday, May 24, 2025
कुछ गलत कुछ सही है (ग़ज़ल)
कुछ गलत, कुछ सही है ।
जिंदगी तो यही है ।।
दंभ की भीत देखो ।
बीच रिश्ते खड़ी है ।।
चीख़ गूँगों की सुनिए।
वेदना से भरी है।।
गाँव की देहरी भी अब ।
शहर से आ मिली है।।
रूह’ सच बोलने पर ।
क्रोध घृणा सही है ।।
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