Tuesday, April 17, 2007

मन मे काफी कुछ बतियाने को है

मन मे काफी कुछ बतियाने को है
दुख-सुख और पिडा बताने को है

कोई दिन बचपन के थे सुनहरे ,
खेला करते थे जब शाम-सवेरे,
उम्र का वो पडाव था बडा अनोखा,
वो यादें कभी भी न भुलाने को है|

कोई दिन था जब साथ था उजाला,
सब था रोशन,न था कुछ भी काला,
वो गुज़रा हुआ वक़्त अब महज,
एक दास्तां है , बस सुनाने को है |

आज समय अलग है एकदम,
करना है बहूत ,वक़्त है कम,
कंधे टुट कर गीर जायेंगे,बोझ,
इतना सारा कांधो पे उठाने को है |

1 comment:

  1. man main kafi kuch hai batiyane ko sach kahte hain rishikesh ji

    man main bhaut se ehsaas hote hain

    par kaha koi aisa milta hai jaha hum khud ko khol kar sach bata sake

    aapki ye rachna dil ke kreeb rahi

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