महानगर का काव्य
ऋषिकेश खोङके "रुह"
Tuesday, April 17, 2007
होली के हाईकु
टेसु के रंग
फागुन की बयार
होली की धुम
रंगो का खेल
गालों पे गुलाल
हाथ अबीर
बच्चो का शोर
रंग भरी पिचकारी
लो भर मारी
घोटि ठंडाई
देखो झुमे कन्हाई
हुवे मलंग
जली होलिका
विनाशी बुराई भी
बचा पूण्य क्या ?
1 comment:
अनूप शुक्ल
July 27, 2007 at 6:56 PM
अच्छे हायकू हैं।
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अच्छे हायकू हैं।
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