महानगर का काव्य
ऋषिकेश खोङके "रुह"
Tuesday, April 17, 2007
बचपन के हाइकु
भूलें तो कैसे
बचपन के दिन
गुड्डे गुडिया
मिट्टि के घर
वो रेत के घरोंदे
बच्चो के खेल
सोते समय
दादी की कहनियां
राजा रानी की
जिद करना
रोकर मना लेना
जो चाहो पाना
1 comment:
अनूप शुक्ल
July 27, 2007 at 6:52 PM
अच्छे हायकू हैं।
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अच्छे हायकू हैं।
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