Wednesday, June 18, 2008

मेघ मल्हार

घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार, अली री !
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

चमक-चम-चम बिजुरीया चमके,
छमक-छम-छम पानी की बौछार, अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

कल-कल-कल-कल,संगीत नदी का,
सर-सर-सर-सर , करे आम की डार, अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

हरीतिमा ओढे, बैठी धरती लजाई,
और सतरंगी श्रावन करे श्रुंगार , अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

पंख फैलाये वन नाचे मयूरा
पिहु-पिहु-पिहु-पिहु, पपीहे की पुकार , अली री
घनन-घन-घन,मेघ गाये मल्हार

5 comments:

  1. बेहद उम्दा रचना, पढ़कर मन आंनदित हो उठा, जब पढ़ रहा हूँ बाहर हो रही वर्षा की फौहर आपके काव्‍य की शोभा का अनन्‍त गुना कर रही है।

    बहुत बहुत बधाई

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  2. kya baat hai barish ka mousam aur aapke geet sahi hai ji

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  3. i like ur poems very much
    aap aaisehi kawitaye kare or hamko sunaye......
    thanx

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  4. good going ..aise hi likhtey rahiye..baarish ka issey jyada spasht warnan or kya ho sakta hai :)

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