Friday, February 20, 2009

अनुपमा

क्या नाम दू मैं तुमको , अपरीचित

क्या पारस ! सोना हो गया हूं तुम्हारे छुने भर से
क्या प्राण ! जिवन्त हो गया मेरा मृत मन तुमसे
क्या वायू ! की कल्पना-पत्र मेरे उडा ले जाते हो
क्या झरना ! कलकल सी हँसी ,सुध बहा जाते हो
क्या ओस ! की शीतल हो जाता है तन-मन तुमसे
क्या संगीत ! की आते हो जब,नृत्यमय लगे सब

हर सुन्दर शब्द तुम्हारी अभिव्यक्ति लगता है,
किन्तु फिर भी तुमसे कुछ कम सा लगता है
कुछ नही की करु मैं जीससे तुम्हारी तुलना
अगोचर,अतुलनीय,अनअभिव्यक्त तुम अनुपमा

4 comments:

  1. क्या पारस ! सोना हो गया हूं तुम्हारे छुने भर से
    क्या प्राण ! जिवन्त हो गया मेरा मृत मन तुमसे
    क्या वायू ! की कल्पना-पत्र मेरे उडा ले जाते हो
    क्या झरना ! कलकल सी हँसी ,सुध बहा जाते हो
    क्या ओस ! की शीतल हो जाता है तन-मन तुमसे
    क्या संगीत ! की आते हो जब,नृत्यमय लगे सब
    waah waah bahut khub

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  2. क्या पारस ! सोना हो गया हूं तुम्हारे छुने भर से
    क्या प्राण ! जिवन्त हो गया मेरा मृत मन तुमसे
    क्या वायू ! की कल्पना-पत्र मेरे उडा ले जाते हो
    क्या झरना ! कलकल सी हँसी ,सुध बहा जाते हो
    क्या ओस ! की शीतल हो जाता है तन-मन तुमसे
    क्या संगीत ! की आते हो जब,नृत्यमय लगे सब

    क्या बात है....बहुत सुंदर

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  3. उम्दा रचना..बढ़िया.

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  4. Bahot khub..Bahot khub...
    now i m feeling proud of being "Anupama" :)
    Thanks for writing such a wonderful poem on my name....
    All the best...

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