Thursday, October 24, 2013

यूं ही छलक पड़े आसूँ

यूं  ही  छलक पड़े आसूँ , न जाने क्यूँ  ।
ढूंढता  हूँ , मिलते नहीं माने क्यूँ  ॥
कोई  सबब  नहीं  मेरी तन्हाई का ।
करीब है सब, लेकिन अन्जाने क्यूँ ॥
ज़माना गुज़र गया मगर आज भी  ।
अहसास किसी का है  सिरहाने क्यूँ

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