ऋषिकेश खोङके "रुह"
मन की , फटी जेब से, अभी-अभी गीरा और टुट गया, एक अहसास ,
की तुम मिलोगे कभी !
देखें थे आँखों ने जो शबनमी, टूट गए हैं वो ख्वाब,
तेरे मिलन की बरखा मे भीगू, रूठ गई है वो आस,
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