महानगर का काव्य
ऋषिकेश खोङके "रुह"
Saturday, May 31, 2025
इतना हत-बल किसलिये (ग़ज़ल)
इतना हत-बल किसलिये।
सत्य निर्बल किसलिये?
धर्म धंधा हो चुका ।
अब गंगा जल किसलिए?
कर्म तो बे मोल हैं ।
जात पर बल किसलिए?
भीख में हक़ मांगते।
लोक दुर्बल किसलिए?
एक सोफा चाहिये।
और जंगल किसलिए?
खेत में सीमेंट जब ।
हाथ में हल किसलिए?
सच अगर क़ाबिल नहीं।
रूह पागल किसलिए?
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