महानगर का काव्य
ऋषिकेश खोङके "रुह"
Wednesday, June 4, 2025
ज़िंदगी (ग़ज़ल)
जिंदगी तू कमाल है ।
तोहफा बेमिसाल है ।।
खुद से खफा हों किसलिए ।
हर घड़ी ये सवाल है ।।
ठोकरें लाख राह में
रोक सकें मजाल है ।।
जीत पड़ाव आख़िरी ।
हार तो एक ख्याल है।।
जिस्म को रूह छोड़ कर ।
जाए कहां सवाल है ।।
3 comments:
Priyahindivibe | Priyanka Pal
June 5, 2025 at 8:23 PM
बहुत ही उम्दा
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Vijay Kumar Bohra
June 5, 2025 at 9:32 PM
वाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति।
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हरीश कुमार
June 7, 2025 at 10:04 AM
वाह वाह वाह, बहुत सुंदर रचना
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बहुत ही उम्दा
ReplyDeleteवाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह वाह वाह, बहुत सुंदर रचना
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