Wednesday, July 2, 2025

दुआओं में असर (ग़ज़ल)

ये दुआओं में असर होता हैं क्या ।
देखते हैं मांग कर होता हैं क्या ।।

रात काटी जाग कर, बेकल रहा ।
कुछ नहीं दिल को ख़बर होता है क्या।।

भूलना उसको तिरे बस में नहीं ।
ढूँढ ऐसा भी हुनर होता है क्या ।।

अश्क भी तो ज़हर है, बहता हुआ।
देखिए इसका असर होता है क्या।।

लब जले, साँसें जलीं, दिल भी जला ।
खाक होने से मगर होता है क्या ।।

चांद लगता है, कभी सूरज लगे।
टोटका शाम ओ सहर होता हैं क्या।।

‘रूह’ साहब अब नहीं मुमकिन सुख़न।
लफ़्ज़ नाख़ुश तो असर होता है क्या ।।

3 comments:

Sweta sinha said...

बेहतरीन गज़ल।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

दिगम्बर नासवा said...

सुंदर शेर ..म लाजवाब ग़ज़ल

हरीश कुमार said...

बहुत सुंदर