Wednesday, June 18, 2008

सावन रुत आयी

सावन रुत आयी

रिमझिम मेघा बरसे,
मेह झरे अंबर से,
घनाघन घन गरजे,
हरीतिमा है छायी |

पीहू-पीहू बोले पपीहा,
कुहू-कुहू कोयलीया,
हर्षाये धरा का जीया,
तन जो बुंदे भिगायी |

बहे झरने झर-झर ,
करे समीर फर-फर,
आकाश से आयी उतर,
अमृता गंगा मायी

1 comment:

Pramendra Pratap Singh said...

इसके पूर्व जो कविता मैने पढ़ी उक्त भाव इस कविता को भी समर्पित करता हूँ।

बधाई स्वीकार कीजिए