Saturday, August 30, 2025

दिल लगाना (ग़ज़ल)

दिल लगाना नहीं मुझको,
कुछ गँवाना नहीं मुझको।

चाक मेरा गिरेबाँ है,
पर दिखाना नहीं मुझको।

राग दीपक सुनाता हूँ,
अब बुझाना नहीं मुझको।

एक महब्बत अधूरी सी,
फिर निभाना नहीं मुझको।

आँख नम, गाल गीले हैं,
पर छुपाना नहीं मुझको।

बस छुपाने कसक अपनी,
मुस्कुराना नहीं मुझको।

धूप है "रूह" दामन में,
छाँव पाना नहीं मुझको।

बह्र: फ़ाएलातुन मुफ़ाईलुन
रदीफ़: नहीं मुझको
क़ाफ़िया: …आना

4 comments:

Sweta sinha said...

बहुत सुंदर गज़ल सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

हरीश कुमार said...

बेहतरीन ग़ज़ल

Arun sathi said...

छुपाना नहीं मुझको, साधु साधु

सुशील कुमार जोशी said...

वाह