भीड़ में तन्हा रहता है ।
ख़ुद से वो उलझा रहता है।।
एक समंदर है आँखों में ।
दिल मगर प्यासा रहता है।।
ज़ख़्म जो हो गर सीने में।
उम्र-भर ताज़ा रहता है।।
रात जब सब सो जाते हैं ।
ख़्वाब तब जागा रहता है।।
"रूह" की ये तो फ़ितरत है।
दर्द में हँसता रहता है।।
ऋषिकेश खोङके "रुह"