मात्र गंध होते हैं,
हृदय में उपजती अनुभूतियों की गंध।
ये गंध,
सुगंध है की दुर्गंध?
अवलंबित है इस पर की
किसी परिस्थिति विशेष में,
आपके हृदय की भावनाएं क्या है,
वो कौन सी अनुभूति है
जो मुझको, तुमको नियंत्रित करती हैं
क्या ये भावनाएं
किसी मीर या किसी निराला के उद्यान से है
या फिर किसी विक्षिप्त के
नराधम सड़े हुए मस्तिष्क की कुंठा के बांसी अवशेष।
हर परिस्थिति में
शब्द व्यक्त हो जाते है
गंध बन कर बिखर जाते है
मैने भी अनेकों बार
अपनी अनुभूति के शब्दों की गंध
सहेजी है कविता का इत्र बना कर
और ये मेरी कविता ,
मात्र सूचीपत्र है
मेरी उन सारी कविताओं का,
जो पन्नों से उड़ कर
अपनी गंध फैलाने को तत्पर है।
कभी समय मिले तो
मेरी कविताओं के इत्र की गंध सूंघे जरूर,
गंध!
सुगंध है कि दुर्गंध
ये मैं आप पर छोड़ता हूं।