Thursday, June 29, 2023

बातें

मुझे समझ नही आती दिखावटी बातें।
चेहरे से लिपटी हुई ये सजावटी बातें ।।
फूट ही जानें दो गुबार दिल का अपने।
आने दो लब पे थोड़ी बगावती बातें।।
लफ्जों की लागलपेट बस की नही मेरे ।
कर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।
हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।
डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।
ना कोई औलिया ना कोई पीर फकीर।
रूह पर करता है बड़ी करामती बातें ।।

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Tuesday, June 27, 2023

शहरों पर मुझको एतबार कोई नही

शहरों पर मुझको एतबार कोई नही ।।
ईंट के मकां लेकिन घरबार कोई नही ।।
नकली फूल, नकली पत्ते कैसा गुलिस्तां है।
कोई खिजां नही यहां, बहार कोई नही।।
आख़िरी सफर को बैठे हैं रोक कर सांसे।
अर्थी को पर कांधा देने, कहार कोई नही ।।
हाकिमों के वादों से अब ऊब सी होती है।
लगता है कह दूं, अब की बार कोई नही।।
आलमी तौर-तरीको से नावाकिफ हूं बस।
लगे दुनियां को रूह सा गंवार कोई नही ।।

**ऋषिकेश खोडके "रूह"**

Wednesday, June 7, 2023

ग़ज़ल

आप बताइये क्या आपकी नज़र करूं ।
शाम रख दूं सामने या पेश सहर करूं।।
यकबयक आप आ गए यूं मेरे सामने ।
दूर चेहरे से अब कैसे ये नजर करूं ।।
दिल तो लोग कहते हैं मेरा, हुआ आपका।
बताईये और क्या आपके नाम पर करूं।।
आपे मै नहीं हूं, आपके हुस्न का नशा है ।
दीजिए बक्श, कोई खता मैं अगर करूं।।
बस एक छोटी सी इल्तिज़ा है रूह की ।
साथ आपके तय ज़िंदगी का सफर करूं
*ऋषीकेश खोडके "रूह"**

ग़ज़ल

हुक्मरान भी आजकल डरने लगे है ।
भले लोगों से कैदखाने भरने लगे हैं।।
मुकदमा तुम कर तो रहे हो वाइज।
गवाह पर बयानों से मुकरने लगे हैं।।
लगता है चुनाव कहीं आस पास ही है ।
हालत मेरे मुहल्ले के सुधरने लगे है ।।
मानसून नहीं , बेमौसम की बारिश है ।
गड्ढे सड़कों पे अभी से निकलने लगे है ।।
ज़माने अच्छे देखें हों, रूह ऐसा भी नही।
हालात पर अब जरा खटकने लगे है।।

*ऋषीकेश खोडके "रूह"*

ग़ज़ल

ज़िंदगी से मुझे मलाल कुछ नही ।
हो किसी को मुझे सवाल कुछ नही।।
कोई वाइज होगा , आलिम होगा ।
मैं मलंग मेरी मिसाल कुछ नही।।
के मौत आयी और हम मर गए ।
सौच मत इसमें कमाल कुछ नही ।।
खून जलता है तो बनती ग़ज़ल।
शेरों में मेरे बेख्याल कुछ नही ।।
देखो रूह ज़रा औरों की हालत।
बेहतर हो तुम ये हाल कुछ नही ।।
कर गुजरा मै जो जी में आया ।।
रुह आसां सब मुहाल कुछ नही ।।
*ऋषीकेश खोड़के "रूह"*