हुक्मरान भी आजकल डरने लगे है ।
भले लोगों से कैदखाने भरने लगे हैं।।
मुकदमा तुम कर तो रहे हो वाइज।
गवाह पर बयानों से मुकरने लगे हैं।।
लगता है चुनाव कहीं आस पास ही है ।
हालत मेरे मुहल्ले के सुधरने लगे है ।।
मानसून नहीं , बेमौसम की बारिश है ।
गड्ढे सड़कों पे अभी से निकलने लगे है ।।
ज़माने अच्छे देखें हों, रूह ऐसा भी नही।
हालात पर अब जरा खटकने लगे है।।
*ऋषीकेश खोडके "रूह"*
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