मुझे समझ नही आती दिखावटी बातें।
चेहरे से लिपटी हुई ये सजावटी बातें ।।
फूट ही जानें दो गुबार दिल का अपने।
आने दो लब पे थोड़ी बगावती बातें।।
लफ्जों की लागलपेट बस की नही मेरे ।
कर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।
हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।
डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।
ना कोई औलिया ना कोई पीर फकीर।
रूह पर करता है बड़ी करामती बातें ।।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**
10 comments:
बातें तो बातें है बातों का क्या।
सुंदर गज़ल सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुंदर गज़ल
लफ्जों की लागलपेट बस की नहीं मेरे ।
कर नही सकता मैं ये मिलावटी बातें ।।
-बहुतों के वश की नह्हीं बातें
अच्छी लगी रचना
बेहतरीन ग़ज़ल ।
वैसे आज कल ज़माना दिखावट का है ।
वाह!!!
बहुत सुन्दर...
लाजवाब।
हुस्न के आगे कमबख्त दिल बेबस है।
डरता हुं कर न दे कोई शरारती बातें ।।
कुछ तकनीकी कारणों से रिप्लाई नही कर पा रहा था। आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
आपका का बहुत बहुत धन्यवाद
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