'हिन्द-युग्म' पर 'काव्य-पल्लवन' के अंतरगत प्रकाशित मेरी नयी कविता "आधारभूत कारण है संवेदक मेरी वेदना" को पढ़ने और उस पर अपने विचार और टिप्पणियाँ देने के लिये, कृपया यहाँ पधारें:-
आधारभूत कारण है संवेदक मेरी वेदना
Wednesday, August 29, 2007
Monday, August 20, 2007
मन बंजारा
मन बंजारा यहाँ-वहाँ डोल रहा है ,
सब खिड़की-दरवाज़े खोल रहा है |
सीधी रेखा पर चलने की चाह मे ,
देखा तो धरा पर सब गोल रहा है |
जहाँ से चला है वहीं पहूंचेगा ,
भटकता कहाँ है ,मन बोल रहा है |
आसमाँ को छू लूं, इसी ख्वाहिश मे ,
कल्पना का पांखी परों को तोल रहा है |
शब्द ना सही कोई आकार तो बने ,
इसलिए हाथ ये स्याही ढोल रहा हैं |
सब खिड़की-दरवाज़े खोल रहा है |
सीधी रेखा पर चलने की चाह मे ,
देखा तो धरा पर सब गोल रहा है |
जहाँ से चला है वहीं पहूंचेगा ,
भटकता कहाँ है ,मन बोल रहा है |
आसमाँ को छू लूं, इसी ख्वाहिश मे ,
कल्पना का पांखी परों को तोल रहा है |
शब्द ना सही कोई आकार तो बने ,
इसलिए हाथ ये स्याही ढोल रहा हैं |
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