Wednesday, November 21, 2007

शब्द-यज्ञ की समीक्षा

'शब्द यज्ञ' परिवेश और प्रकृति की अनुभूतियों को सार्थकता प्रदान करती रचनाएं


प्रकृति , परिवेश और अपनी दिनचर्या से जुड़ी सकारात्मक और नकारात्मक अनुभूतियों से मनुष्य का जीवन विलग नहीं हो पाता बाल्यकाल , युवा अवस्था व वृद्धावस्था के दौर में मानव मन पर परिवेश का व्यापक प्रभाव पड़ता है इन प्रभावों को अभिव्यक्ति देने की प्रायः सभी में विशेष उत्कंठा और अभिलाषा होती है इसी तरह उत्कंठाओं और अभिलाषाओं को जब व्यक्ति शब्दों में पिरोने का प्रयास कर उसको सार्वजनिक करता है और उसमें मन के भावों को उतारकर रसमय करता है , वह कविता होती है

युवा कवि ऋषिकेश खोडके "रुह" भी अपनी रचनाओं के शब्द-यज्ञ में अपनी अनुभूतियों को कामयाबी के साथ प्रकट करने के लिये आतुर दिखाई दे रहे हैं वे बड़ी दिलेरी के साथ कविता के संसार में प्रवेश कर रहे हैं उनके परिजनों से मिली प्रेरणाओं को वे अपने काव्यलेखन का मार्गदर्शन मानते है अभी तक काव्य-यात्रा में उन्होंने जितनी दूरी तय की है, उसको नापने के लिये उन्होंने इस काव्य संग्रह को एक पैमाने के रुप में समाज के सामने प्रस्तुत करने का उपक्रम किया है इस युवा कवि की रचनाओं में भावतत्वों के प्रधानता के साथ ही प्रस्तुतिकरण में जिस तरह की उपमाएँ, बिम्ब और प्रतीक देखने को मिल रहे हैं , उसमें इस कवि में काव्य भविष्य की अपार संभावनाऍ परिलक्षित होती हैं

' थकान लिपि' कविता में दिनभर की आपधापी और उसके तन और मन पर होने वाले प्रभाव तथा रात्रि विश्राम के बाद फिर एक नये दिन के शुरुआत को जिन बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से प्रतुत किया गया है उससे कवि का काव्यज्ञान निखरता हुआ प्रतीत होता है

'थकान लिपि , लिख दी अंगो पर/दिन की दौङ-धूप ने शाम/बोझल पलकें,

आलस्य/थकावट का अनुभव/क्षणिक सी पीङा/हल्का सा दर्द

अंगों पर ना जाने क्या-क्या/लिखा गया रात होते होते'

इस रचना में कवि के मन-मस्तिष्क में दिनचर्या के प्रभावों का सटीक और सार्थक प्रतुतिकरण है , साथ ही अगली दिनचर्या के लिए नई ताजगी के साथ तैयार रहने का संकेत भी इस रचना की विशेषता है 'प्रार्थी-भाव ' और ' धूप' रचनाओं में प्रकृति के प्रवृत्ति को प्रस्तुत करने हुए उसके साथ मानव मन के समन्वय भाव को जोङने का एक अच्छा दृश्य देखने को मिलता है

'रात का समय/कङाके की ठंड/जर्जर झोपङी

अनचाहे छिद्रों की खिङकियाँ/हवा का प्रवेश अनाधिकृत'

'हटाया जब मैंने/परदा,खिङकी पर से ,/खिङकी पर झूलती धूप/

कर गई प्रवेश कमरे में/और लिपट गयी/मुस्कुराकर मेरे बदन से'

कुछ कविताएँ ऐसी भी है जिसमें आशा , निराशा ,दय, करुणा और संवेदनाओं के भाव की प्रधानता है इस भावों के उद्‌गार निम्न पंक्तियों मे झलकते हैं

'... की अचानक/जिंगदी ने छिंक दिया/रोज की तरह/एकदम, मौके पर..

...हाथ से आईना/ज़िंदगी का/अचानक छिटक गया /टूट गया/और टूट गई सारी आशाऐं.. '

' संवाद भाषा' रचाना में प्रेम की अभिव्यक्ति का उल्लेख सार्थक बन पड़ा है

' तुम जो मौन-मुखर/प्रम पाती भेजोगी/वो अवश्य मुझ तक आएगी

प्रेम की भाषा/नेत्रों की असमर्थता से/बाधा न पायेगी.. '

प्रेम , मिलन ,विरह, उद्वेग और मन के उत्फुल भावों को इस युवा कवि ने अपनी ही शैली मे प्रस्तुत करने का प्रयास किया है अपने अहसासों को प्रस्तुत करने में काव्य-मर्यादा के प्रति भी कवि की सजगता झलकती है

' अहसास की गोद में फैला दी/मैंने कागज की चादर/हाथ में भर हवा में उछाले/कुछ अक्षर मात्राएँ'

गुजरे हुए समय और वर्तमान स्थिति का चित्रण 'पुरानी बस्ती ,गली, मकान' शीर्षक की कविता में जिन प्रतीकों में प्रतुत किया गया है इससे कवि का चित्रण पक्ष मजबूत बन पड़ा है किसी-किसी रचना मे कवि मे भीतर का रहस्यवाद और दर्शन पक्ष उभरकर सामने आया है

' ज़हर तेरे इश्क का/पी लिया है मैंने/कमबख्त ! मौत मगर आती ही नही'

' मैंने सर झुकाया/की प्रार्थना/सम्पूर्ण इयत्ता से/मुझे भी अपने में मिला लो'

' जीवन ! पहला आर्य-सत्य/दुखः ही दुखः/काश मिल जाए कोई गौतम'

' आओ चले सपने ढूंढ़े','मेरे सपने खरीद लो , मुझे हकीकत दे दो ','तन में अंकुर फूटा/तन-फल उगा/मन के तल पर ', जैसी पंक्तियाँ लिखकर कवि ने जीवन के साथ ही पहचान बनाने का प्रयास किया है संग्रह की प्रायः सभी रचनाएँ टिप्पणी की हकदार है , किन्तु कवि के कृतित्व और व्यक्तित्व के मूल्यांकन के लिये कुछ उदारहण ही पर्याप्त होते है कवि ने अपने भावों के प्रकट करने में कहीं-कहीं सिधे बात की है तो कहीं बिम्बों , प्रतीकों और उपमाओं का सहारा बनाया है छंद , अतुकांत औअर मुक्त छंद में आबद्ध रचनाओं मे भाव तत्व और कल्पनाओं का सामंजस्य बिठाने के लिये कवि प्रयासरत है दोहे , गीत और ग़ज़ल को भी कवि अपने भावोभिव्यक्ति का आधार बनाता है

प्रथम काव्य संग्रह की तमन्न लेकर कवि ने जिस तरह की रचनाओं का चयन किया है , इसमें कवि की दृष्टि के अनेक कोण दिखाई देते है भावतत्व , कल्पना और रागात्मकता की कसौटी पर ये रचनाऐं कितनी करी उअतर पाती है ये तो पाठको के मन पर पड़नेवाले प्रभावों से ही स्पष्ट हो सकेगा किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इस संग्रह की अधिकांश रचनाएँ पाठकों को निराश नही करेंगी

संग्रह की रचनाएं इस बात की पुष्टि के लिये पर्याप्त है कि युवा कवि काव्यमार्ग पर चले की पटरी तलाशने के लिये सही दिशा में आगे कदम रख चुका है आशा है कि यह संग्रह इस कवि के विषय संसार में स्थापित कराने में सफलता अर्जित करेगा

शुभकामना सहित

श्री राजेंद्र जोशी
निदेशक-
राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी
रुपाम्बरा
उपाध्यक्ष
म. प्र. लेखक संघ
उपाध्यक्ष
समकालनी सहित्य सम्मेलन

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