परों को आजमा के देखो।
ऊंचाइयों पे जा के देखो।।
कोई आवाज़ नही उठेगी।
बस्तियों को जला के देखो।।
कब्जे में हैं फुटपाथ भी।
चादर तो बिछा के देखो।।
फुटपाथ पे मरी सर्दी।
चादर को हटा के देखो।।
परिंदे आ ही जायेंगें।
दरख्तों को लगा के देखो।।
किसी का टिफिन बॉक्स है।
कूड़े के पास जाके देखो ।।
कोई सुन ले रूह शायद
शोर में चिल्ला के देखो।
8 comments:
अच्छी रचना...कम शब्दों में बहुत कुछ समेटना आसान नहीं।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद स्वेता जी
बहुत सुंदर रचना
धन्यवाद हरीश जी
वाह
मर्मस्पर्शी सृजन ।
धन्यवाद सुशील जी
धन्यवाद मीना जी
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