Thursday, October 3, 2024

देवी ब्रह्मचारिणी

1. 

स्वर्ण हिमालय की कुमारी,
पार्वती सरस रूप धारी,
तप की धारा-सी निर्मल,
शांत, मनोहर, कोमल।

2. 

अंजुलि में माला झलके,
कमंडल संग कर मधुरिम,
श्वेतवस्त्र सी शीतल छवि,
दीप्त ज्योति, कांति अमरिम।

3. 

नारद के वचन सुने जब,
जागी साधना अपार,
शिव-भक्ती का दिप जलाकर,
हिमगिरि पथ चली उदार।

4. 

त्यागे दिये सुख भोग सारे,
भूल गईं सारा संसार,
पर्णाहार व्रत कर धारण,
की कठिन तपस्या अपार।

5. 

भुखे-प्यासे तप किया अथक,
ध्यान-लीन, संकल्प महान,
शिव-प्रेम में बन बैठीं,
वैरागिनी की मूर्ति प्रधान।

6. 

सृष्टि के सारे कण-कण में,
शक्ति का संचार किया,
तप की प्रखर ज्वाला से,
भवसागर को पार किया।

7. 

संयम की महा प्रतिमा,
शांति-व्रत सिखाती है|
भक्तों के मन का हर संशय,
मोह-अज्ञान मिटाती हैं|

8. 

पूजा में जो ध्यान करे,
मिटते संकट अपार,
धैर्य का पाठ सिखलाये,
जीवन को दे नव विस्तार।

9. 

अध्यात्म की इस अग्नि से,
जग का तम हर जाती हैं,
शक्ति का संचार कर,
भक्ति से भाव जगाती हैं।

10. 

दास ऋषिकेश कहे, जपो,
ब्रह्मचारिणी रूप का नाम,
शांति, धैर्य, तप से पाओ,
जीवन का परमाधाम।

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