मैं ही मेरे जैसा और ना कोई ।
ऐसा वैसा कैसा और ना कोई ।।
ग़म के बादल भी सूखे आँखों में ।
बूँदों को यूं तरसा और ना कोई ।।
दिल की बातें कैसे कह दूँ, सबसे ।
गहरा रिश्ता ऐसा, और ना कोई ।।
हाथों की रेखा में उलझा रहता ।
शायद इंसाँ जैसा और ना कोई ।।
अपनी ख़ुश्बू जब बाँटी उससे तो ।
यूँ महका वो जैसा, और ना कोई ।।
उसके ग़म में टूटा हद से ज़्यादा ।
चुप है जैसे गूँगा, और ना कोई ।।
उसके चेहरे पर मत होना आशिक़ ।
उसके जैसा छलिया और ना कोई ।।
यादों का शो'ला है दिल के अंदर ।
मेरे दिल सा जलता और ना कोई ।।
सब कुछ जाने अपने बारे में "रूह"।
खुद को इतना समझा, और ना कोई ।।
**ऋषिकेश खोडके "रूह"**
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