होरी में छलिया छल कर गयो,
गुलाल अबीर हमे रंग कर गयो...
हम तो भिगोने की सोचत रहे,
हमको ही कान्हा तर कर गयो...
होरी में छलिया छल कर गयो....
पिचकारी मारि के, तन भिगायों,
अबीर गुलाल मोहे मोहन लगायो...
हम सखियां सोचे कान्हा रंग लगावैं,
नटखट पर हाथन छिटक कर गयो।
होरी में छलिया छल कर गयो....
होद में डारै की ठानी सबने,
राधा गोपि खींचे लाई, किसन ने,
पर छलिया प्रपंच सारा बुझ गयो,
खुद हमका होद गिराय कर गयो...
होरी में छलिया छल कर गयो....
हम रोवत बईठे संग सखिन के,
नंदकिशोर तब बोलै हंसि के
होरी खेलें चलो सबै मिलन के
प्रेम से रंगीलो सराबोर कर गयो...
होरी में छलिया छल कर गयो....
3 comments:
अति लुभावन,सरस गीत षर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह
होली पल बहुत सुन्दर मनभावन गीत ।
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