मन की ,
फटी जेब से,
अभी-अभी गीरा और
टुट गया,
एक अहसास ,
की तुम मिलोगे कभी !
देखें थे आँखों ने
जो शबनमी,
टूट गए हैं
वो ख्वाब,
की तुम मिलोगे कभी !
तेरे मिलन की
बरखा मे भीगू,
रूठ गई है
वो आस,
की तुम मिलोगे कभी !
ऋषिकेश खोङके "रुह"
मन की ,
फटी जेब से,
अभी-अभी गीरा और
टुट गया,
एक अहसास ,
की तुम मिलोगे कभी !
देखें थे आँखों ने
जो शबनमी,
टूट गए हैं
वो ख्वाब,
की तुम मिलोगे कभी !
तेरे मिलन की
बरखा मे भीगू,
रूठ गई है
वो आस,
की तुम मिलोगे कभी !